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नियमसार
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(मालिनी) भविनि भवगुणा: स्युः सिद्धजीवेऽपि नित्यं निजपरमगुणाः स्युः सिद्धिसिद्धाः समस्ताः। व्यवहरणनयोऽयं निश्चयान्नैव सिद्धिन च भवति भवो वा निर्णयोऽयं बुधानाम्।। ३५ ।।
दव्वत्थिएण जीवा वदिरित्ता पुव्वभणिदपज्जाया। पज्जयणएण जीवा संजुत्ता होंति दुविहेहिं।। १९ ।।
द्रव्यार्थिकेन जीवा व्यतिरिक्ताः पूर्वभणितपर्यायात्।
पर्यायनयेन जीवाः संयुक्ता भवन्ति द्वाभ्याम्।। १९ ।। इह हि नयद्वयस्य सफलत्वमुक्तम्।
द्वौ हि नयौ भगवदर्हत्परमेश्वरेण प्रोक्तौ, द्रव्यार्थिक: पर्यायार्थिकश्चेति। द्रव्यमेवार्थ: प्रयोजनमस्येति द्रव्यार्थिकः। पर्याय एवार्थ:
[श्लोकार्थ:-] संसारीमें सांसारिक गुण होते हैं और सिद्ध जीवमें सदा समस्त सिद्धिसिद्ध (मोक्षसे सिद्ध अर्थात् परिपूर्ण हुए) निज परमगुण होते हैं-इस प्रकार व्यवहारनय है। निश्चयसे तो सिद्ध भी नहीं है और संसार भी नहीं है। यह बुध पुरुषोंका निर्णय है। ३५।
गाथा १९ अन्वयार्थ:-[ द्रव्यार्थिकेन] द्रव्यार्थिक नयसे [ जीवाः] जीव [ पूर्वभणितपर्यायात् ] पूर्वकथित पर्यायसे [ व्यतिरिक्ताः] *व्यतिरिक्त है; [ पर्यायनयेन ] पर्यायनयसे [ जीवाः ] जीव [ संयुक्ताः भवन्ति ] उस पर्यायसे संयुक्त हैं। [ द्वाभ्याम् ] इसप्रकार जीव दोनों नयोंसे संयुक्त
है
टीका:-यहाँ दोनों नयोंका सफलपना कहा है।
भगवान अर्हत् परमेश्वरने दो नय कहे हैं: द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक। द्रव्य ही जिसका अर्थ अर्थात् प्रयोजन है वह द्रव्यार्थिक है और पर्याय ही जिसका अर्थ अर्थात् । * व्यतिरिक्त = भिन्न; रहित; शून्य।
है उक्त पर्ययशून्य आत्मा द्रव्य दृष्टिसे सदा । है उक्त पर्यायों सहित पर्याय-नयसे वह कहा।।१९।।
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