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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates नियमसार ३६ णरणारयतिरियसुरा पज्जाया ते विहावमिदि भणिदा। कम्मोपाधिविवज्जियपज्जाया ते सहावमिदि भणिदा।। १५ ।। नरनारकतिर्यक्सुराः पर्यायास्ते विभावा इति भणिताः। कर्मोपाधिविवर्जितपर्यायास्ते स्वभावा इति भणिताः।। १५ ।। स्वभावविभावपर्यायसंक्षेपोक्तिरियम्। तत्र स्वभावविभावपर्यायाणां मध्ये स्वभाव-पर्यायस्तावत् द्विप्रकारेणोच्यते। कारणशुद्धपर्यायः कार्यशुद्धपर्यायश्चेति। इह हि सहजशुद्ध निश्चयेन अनाद्यनिधनामूर्तातीन्द्रियस्वभावशुद्धसहजज्ञानसहजदर्शनसहजचारित्रसहजपरम-वीतराग सुखात्मकशुद्धान्तस्तत्त्वस्वरूपस्व -भावानन्तचतुष्टयस्वरूपेण सहांचितपंचमभाव-परिणतिरेव-कारणशुद्धपर्याय इत्यर्थः। गाथा १५ अन्वयार्थ:-[ नरनारकतिर्यक्सुराः पर्यायाः ] मनुष्य, नारक, तिर्यंच और देवरूप पर्यायें [ते] वे [विभावाः] विभावपर्यायें [इति भणिताः] कही गई हैं; [ कर्मोपाधिविवर्जितपर्यायाः ] कर्मोपाधि रहित पर्यायें [ ते ] वे [ स्वभावाः ] स्वभावपर्यायें [इति भणिताः] कही गई हैं। टीका:---यह, स्वभावपर्यायों तथा विभावपर्यायोंका संक्षेप कथन है। वहाँ, स्वभावपर्यायों और विभावपर्यायोंके बीच प्रथम स्वभावपर्याय दो प्रकारसे कही जाती है : कारणशुद्धपर्याय और कार्यशुद्धपर्याय। यहाँ सहज शुद्ध निश्चयसे , अनादि-अनंत, अमूर्त, अतींद्रियस्वभाववाले और शुद्ध ऐसे सहजज्ञान-सहजदर्शन-सहजचारित्र-सहजपरमवीतरागसुखात्मक शुद्ध-अंतःतत्त्वस्वरूप जो स्वभाव-अनंतचतुष्टयका स्वरूप उसके साथकी जो पूजित पंचमभावपरिणति (-उसके साथ तन्मयरूपसे रहनेवाली जो पूज्य ऐसी पारिणामिकभावकी परिणति) वही कारणशुद्धपर्याय है, ऐसा अर्थ है। तिर्यंच, नारकि, देव, नर पर्याय हैं वैभाविकी। पर्याय कर्मोपाधि वर्जित हैं कही स्वभाविकी ।।१५।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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