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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates नियमसार २२ अयं चेतनः। अस्य चेतनगुणाः। अयममूर्तः। अस्यामूर्तगुणाः। अयं शुद्धः। अस्य शुद्धगुणाः। अयमशुद्धः। अस्याशुद्धगुणाः। पर्यायश्च। तथा गलनपूरणस्वभावसनाथ: पुद्गलः। श्वेतादिवर्णाधारो मूर्तः। अस्य हि मूर्तगुणाः। अयमचेतनः। अस्याचेतनगुणाः। स्वभावविभावगतिक्रियापरिणतानां जीवपुद्गलानां स्वभावविभावगतिहेतु: धर्मः। स्वभावविभावस्थितिक्रियापरिणतानां तेषां स्थितिहेतुरधर्मः। यह (जीव) चेतन है; इसके चेतन गुण है। यह अमूर्त है; इसके अमूर्त गुण है। यह शुद्ध है; इसके शुद्ध गुण है। यह अशुद्ध है; इसके अशुद्ध गुण है। पर्याय भी इसी प्रकार है। और, जो गलन-पूरणस्वभाव सहित है ( अर्थात् पृथक होने और एकत्रित होनेके स्वभाववाला है ) वह पुद्गल है। यह (पुद्गल ) श्वेतादि वर्गों के आधारभूत मूर्त है; इसके मूर्त गुण हैं। यह अचेतन है; इसके अचेतन गुण हैं। 'स्वभावगतिक्रयारूप और विभावगतिक्रियारूप परिणत जीव-पुद्गलोंको स्वभावगतिका और विभावगतिका निमित्त सो धर्म है। स्वभावस्थितिक्रियारूप और विभावस्थितिक्रियारूप परिणत जीव-पुद्गलोंको स्थितिका ( - स्वभावस्थितिका और विभावस्थितिका) निमित्त सो अधर्म है। शुद्ध (-केवलज्ञानादि सहित) होता है अर्थात् “ कार्यशुद्ध जीव” होता है। शक्तिमेंसे व्यक्ति होती है, इसलिये शक्ति कारण है और व्यक्ति कार्य है। ऐसा होनेसे शक्तिरूप शुद्धतावाले जीवको कारणशुद्ध जीव कहा जाता है और व्यक्त शुद्धतावाले जीवको कार्यशुद्ध जीव कहा जाता है। [ कारणशुद्ध अर्थात् कारण-अपेक्षासे शुद्ध अर्थात् शक्ति अपेक्षासे शुद्ध। कार्यशुद्ध अर्थात् कार्य-अपेक्षासे शुद्ध अर्थात् व्यक्ति-अपेक्षासे शुद्ध।] १। चौदहवें गुणस्थानके अंतमें जीव ऊर्ध्वगमनस्वभावसे लोकांतमें जाता है वह जीवकी स्वभावगतिक्रिया है और संसारावस्थामें कर्मके निमित्तसे गमन करता है वह जीव की विभावगतिक्रिया है। एक पृथक परमाणु गति करता है वह पुद्गलकी स्वभावगतिक्रिया है और पुद्गलस्कंध गमन करता है वह पुद्गलकी (-स्कंधके प्रत्येक परमाणुकी) विभावगतिक्रिया है। इस स्वाभाविक तथा वैभाविक गतिक्रियामें धर्मद्रव्य निमित्तमात्र है। २। सिद्धदशामें जीव स्थिर रहता है वह जीवकी स्वाभाविक स्थितिक्रिया है और संसारदशामें स्थिर रहता है वह जीवकी वैभाविक स्थितिक्रिया है। अकेला परमाणु स्थिर रहता है वह पुद्गलकी स्वाभाविक स्थितिक्रिया है और स्कंध स्थिर रहता है वह पुद्गलकी (-स्कंधके प्रत्येक परमाणुकी) वैभाविक स्थितिक्रिया है। यह जीव-पुद्गलकी स्वाभाविक तथा वैभाविक स्थितिक्रियामें अधर्मद्रव्य निमित्तमात्र है। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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