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जीव अधिकार
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जीवा पोग्गलकाया धम्माधम्मा य काल आयासं। तचत्था इदि भणिदा णाणागुणपज्जएहिं संजुत्ता।।९।।
जीवाः पुद्गलकाया धर्माधर्मौ च काल आकाशम्। तत्त्वार्था इति भणिताः नानागुणपर्यायैः संयुक्ताः।। ९ ।।
अत्र षण्णां द्रव्याणां पृथक्पृथक् नामधेयमुक्तम्।स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुः श्रोत्रमनोवाक्कायायुरुच्छ्वासनिःश्वासाभिधानैर्दशभिः प्राणैः जीवति जीविष्यति जीवितपूर्वो वा जीवः। संग्रहनयोऽयमुक्तः। निश्चयेन भावप्राणधारणाजीवः। व्यवहारेण द्रव्यप्राणधारणाज्जीवः । शुद्धसद्भूतव्यवहारेण केवलज्ञानादिशुद्धगुणानामाधारभूतत्वात्कार्य-शुद्धजीवः। अशुद्धसद्भूत व्यवहारेण मतिज्ञानादिविभावगुणानामाधार भूतत्वादशुद्धजीवः। शुद्धनिश्चयेन सहजज्ञानादि परमस्वभावगुणानामाधारभूतत्वात्कारणशुद्धजीवः।
गाथा ९ अन्वयार्थ:-[ जीवाः ] जीव , [ पुद्गलकायाः ] पुद्गलकाय, [धर्माधर्मों ] धर्म , अधर्म, [ कालः ] काल, [च ] और [ आकाशम् ] आकाश-[ तत्त्वार्थाः इति भणिताः ] यह तत्त्वार्थ कहे हैं, जो कि [ नानागुणपर्यायैः संयुक्ताः ] विविध गुण-पर्यायोंसे संयुक्त हैं।
टीका:-यहाँ ( इस गाथामें ) छह द्रव्योंके पृथक्-पृथक् नाम कहे गये हैं।
स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु , श्रोत्र, मन, वचन, काय, आयु और श्वासोच्छवास नामक दस प्राणोंसे ( संसारदशामें) जो जीता है, जियेगा और पूर्व काल में जीता था वह “जीव" है।---यह संग्रहनय कहा। निश्चयसे भावप्राण धारण करनेके कारण “जीव" है। व्यवहारसे द्रव्यप्राण धारण करनेके कारण “जीव" है। शुद्ध-सद्भूत-व्यवहारसे केवलज्ञानादि शुद्धगुणोंका आधार होनेके कारण “ कार्यशुद्ध जीव" है। अशुद्ध-सद्भूतव्यवहारसे मतिज्ञानादि विभावगुणोंका आधार होनेके कारण “ अशुद्ध जीव” है। शुद्धनिश्चयसे सहजज्ञानादि परमस्वभावगुणोंका आधार होनेके कारण कारणशुद्ध जीव” है। * प्रत्येक द्रव्य शक्ति-अपेक्षासे शुद्ध है अर्थात् सहजज्ञानादिक सहित है इसलिये प्रत्येक
जीव “कारणशुद्ध जीव” है; जो कारणशुद्ध जीवको भाता है-उसीका आश्रय करता है, वह व्यक्ति-अपेक्षासे
षट् द्रव्य पुद्गल , जीव, धर्म , अधर्म , कालाकाश हैं । ये विविध गुण-पर्यायसे संयुक्त षट् तत्त्वार्थ हैं ।।९।।
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