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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates नियमसार २० पच्यमानसमस्तदीनजनतामहत्क्लेशनिर्नाशनसमर्थसजलजलदेन कथिताः खलु सप्त तत्त्वानि नव पदार्थाश्चेति। तथा चोक्तं श्रीसमन्तभद्रस्वामिभिः (आर्या) "अन्यूनमनतिरिक्तं याथातथ्यं विना च विपरीतात्। निःसन्देहं वेद यदाहुस्तज्ज्ञानमागमिनः।।'' (हरिणी) ललितललितं शुद्धं निर्वाणकारणकारणं निखिलभविनामेतत्कर्णामृतं जिनसद्वचः। भवपरिभवारण्यज्वालित्विषां प्रशमे जलं प्रतिदिनमहं वन्दे वन्द्यं सदा जिनयोगिभिः।। १५ ।। जिस पर स्वयं पहले कभी नहीं गया है ऐसे) मोक्ष-महेलकी प्रथम सीढ़ी है और जो कामभोगसे उत्पन्न होनेवाले अप्रशस्त रागरूप अंगारों द्वारा सिकते हुए समस्त दीन जनोंके महाक्लेशका नाश करनेमें समर्थ सजल मेघ (-पानसे भरा हुआ बादल) है, उसने-- वास्तव में सात तत्त्व तथा नव पदार्थ कहे हैं। इसीप्रकार ( आचार्यदेव ) श्री समंतभद्रस्वामीने (रत्नकरंडश्रावकाचारमें ४२ वें श्लोक द्वारा) कहा है कि:-- " [ श्लोकार्थ:-] जो न्यूनता बिना, अधिकता बिना, विपरीतता बिना यथातथ वस्तुस्वरूपको निःसंदेहरूपसे जानता है उसे 'आगमियों ज्ञान ( सम्यग्ज्ञान ) कहते है।" [अब, आठवीं गाथाकी टीका पूर्ण करते हए टीकाकार मुनिराज श्लोक द्वारा जिनवाणीको----जिनागमको वंदन करते हैं : ] [ श्लोकार्थ:- ] जो (जिनवचन) ललितमें ललित हैं, जो शुद्ध हैं, जो निर्वाणके कारण का कारण हैं, जो सर्व भव्योंके कर्णोंको अमृत हैं, जो भवभवरूपी अरण्यके उग्र दावानलको शांत करनेमें जल हैं और जो जैन योगीयों द्वारा सदा वंद्य हैं, ऐसे इन जिनभगवानके सद्वचनोंको ( सम्यक् जिनागमको) मैं प्रतिदिन वंदन करता हूँ। १५ । १। आगमियों = आगमवंतो; आगमके ज्ञाताओं। २। ललितमें ललित = अत्यंत प्रसन्नता उत्पन्न करें ऐसे; अतिशय मनोहर। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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