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________________ २८३ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहा है नियमसार अत्राप्यन्यवशस्याशुद्धान्तरात्मजीवस्य लक्षणमभिहितम्। च यः खलु जिनेन्द्रवदनारविन्दविनिर्गतपरमाचारशास्त्रक्रमेण सदा संयतः सन् शुभोपयोगे चरति, व्यावहारिकधर्मध्यानपरिणतः अत एव चरणकरणप्रधानः, स्वाध्यायकालमवलोकयन् स्वाध्यायक्रियां करोति, दैनं दैनं भुक्त्वा भुक्त्वा चतुर्विधाहारप्रत्याख्यानं करोति, तिसृषु संध्या भगवदर्हत्परमेश्वरस्तुतिशतसहस्रमुखरमुखारविन्दो भवति, त्रिकालेषु च नियमपरायणः इत्यहोरात्रेऽप्येकादशक्रिया- तत्परः, पाक्षिकमासिकचातुर्मासिकसांवत्सरिक प्रतिक्रमणाकर्णनसमुपजनितपरितोषरोमांचकंचुक्तिधर्मशरीरः, अनशनावमौदर्यरसपरित्यागवृत्तिपरिसंख्यानविविक्तशयनासनकायक्लेशाभिधानेषु षट्सु बाह्यतपस्सु च संततोत्साहपरायणः, स्वाध्यायध्यानशुभाचरणप्रच्युतप्रत्यवस्थापनात्मकप्रायश्चित्तविनयवैयावृत्त्यव्युत्सर्गनामधेयेषु चाभ्यन्तरतपोनुष्ठानेषु च टीका :- यहाँ भी ( इस गाथामें भी ), अन्यवश ऐसे अशुद्ध - अंतरात्मजीवका लक्षण 1 जो (श्रमण ) वास्तवमें जिनेंद्रके मुखारविंदसे निकले हुए परम - आचारशास्त्रके क्रमसे (रीतसे) सदा संयत रहता हुआ शुभोपयोगमें चरता - प्रवर्तता है; व्यावहारिक धर्मध्यानमें परिणत रहता है इसीलिये * चरणकरणप्रधान है; स्वाध्यायकालका अवलोकन करता हुआ ( - स्वाध्याययोग्य कालका ध्यान रखकर ) स्वाध्यायक्रिया करते हैं, प्रतिदिन भोजन करके चतुर्विध आहारका प्रत्याख्यान करता है, तीन संध्याओंके समय ( - प्रातः, माध्याह्न तथा सायंकाल) भगवान अर्हत् परमेश्वरकी लाखों स्तुति मुखकमलसे बोलता है, तीनों काल नियमपरायण रहता है ( अर्थात् तीनों समय के नियमोमें तत्पर रहता है), – इसप्रकार अहर्निश (दिन-रात मिलकर) ग्यारह क्रियाओंमें तत्पर रहता है; पाक्षिक, मासिक, चातुर्मासिक तथा सांवत्सरिक प्रतिक्रमण सुननेसे उत्पन्न हुए संतोषसे जिसका धर्मशरीर रोमांचसे छा जाता है, अनशन, अवमौदर्य, रसपरित्याग, वृत्तिपरिसंख्यान, विविक्त शय्यासन और कायक्लेश नामके छह बाह्य तपमें जो सतत उत्साहपरायण रहता है; स्वाध्याय, ध्यान, शुभ आचरणसे च्युत होनेपर पुनः उसमें स्थापनस्वरूप प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्त्य और व्युत्सर्ग नामक अभ्यंतर तपोंके अनुष्ठानमें ( आचरणमें) * चरणकरणप्रधान = शुभ आचरणके परिणाम जिसे मुख्य हैं ऐसा । Please inform us of any errors on rajesh@Atma Dharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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