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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates परम-भक्ति अधिकार २६६ ( वसंततिलका) ये मर्त्यदैवनिकुरम्बपरोक्षभक्तियोग्याः सदा शिवमयाः प्रवराः प्रसिद्धाः। सिद्धाः सुसिद्धिरमणीरमणीयवक्त्र पंकेरुहोरुमकरंदमधुव्रताः स्युः।। २२६ ।। मोक्खपहे अप्पाणं ठविऊण य कुणदि णिव्वुदी भत्ती। तेण दु जीवो पावइ असहायगुणं णियप्पाणं ।। १३६ ।। मोक्षपथे आत्मानं संस्थाप्य च करोति निवृतेर्भक्तिम्। तेन तु जीवः प्राप्नोत्यसहायगुणं निजात्मानम्।। १३६ ।। जो ज्ञेयरूपी महासागरके पारको प्राप्त हुए हैं, जो मुक्तिलक्ष्मीरूपी स्त्रीके मुखकमलके सूर्य हैं, जो स्वाधीन सुखके सागर हैं, जिन्होंने अष्ट गुणोंको सिद्ध (प्राप्त) किया है, जो भवका नाश करनेवाले हैं तथा जिन्होंने आठ कर्मोंके समूहको नष्ट किया है, उन पापाटवीपावक (-पापरूपी अटवीको जलानेमें अग्नि समान) नित्य (अविनाशी) सिद्धभगवंतोंकी मैं निरंतर शरण लेता हूँ। २२५। [श्लोकार्थ:-] जो मनुष्योंके तथा देवोंके समूहकी परोक्ष भक्तिके योग्य है, जो सदा शिवमय है, जो श्रेष्ठ हैं तथा जो प्रसिद्ध हैं, वे सिद्धभगवंत सुसिद्धिरूपी रमणीके रमणीय मुखकमलके महा 'मकरंदके भ्रमर हैं (अर्थात् अनुपम मुक्तिसुखका निरंतर अनुभव करते हैं )। २२६। गाथा १३६ अन्वयार्थ:-[ मोक्षपथे] मोक्षमार्गमें [आत्मानं] (अपने ) आत्माको [ संस्थाप्य च ] सम्यक् प्रकारसे स्थापित करके [ निर्वृतेः ] निर्वृतिकी (निर्वाणनी) [ भक्तिम् ] भक्ति [ करोति] करता है, [ तेन तु] उससे [जीवः] जीव [ असहायगुणं] असहाय-गुणवाले [ निजात्मानम् ] निज आत्माको [ प्राप्नोति] प्राप्त करता है।। १। मकरंद = फूलका पराग; फूलका रस, फूलका केसर। २। असहायगुणवाला = जिसे किसीकी सहायता नहीं है ऐसे गुणवाला। ( आत्मा स्वतःसिद्ध सहज स्वतंत्र गुणवाला होनेसे असहायगुणवाला है।) रे! जोड़ निजको मुक्ति पथमें निवृत्तिकी करे । अतएव वह असहाय-गुण-सम्पन्न निज आत्मा वरे ।। १३६ ।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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