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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates परम-समाधि अधिकार २५२ जस्स सण्णिहिदो अप्पा संजमे णियमे तवे। तस्स सामाइगं ठाइ इदि केवलिसासणे।। १२७ ।। यस्य सन्निहितः आत्मा संयमे नियमे तपसि। तस्य सामायिकं स्थायि इति केवलिशासने।। १२७ ।। अत्राप्यात्मैवोपादेय इत्युक्तः। यस्य खलु बाह्यप्रपंचपराङ्मुखस्य निर्जिताखिलेन्द्रियव्यापारस्य भाविजिनस्य पापक्रियानिवृत्तिरूपे बाह्यसंयमे कायवाङ्मनोगुप्तिरूपसकलेन्द्रियव्यापारवर्जितेऽभ्यन्तरात्मनि परिमितकालाचरणमात्रे नियमे परमब्रह्मचिन्मयनियतनिश्चयान्तर्गताचारे स्वरूपेऽविचलस्थितिरूपे व्यवहारप्रपंचितपंचाचारे पंचमगतिहेतुभूते किंचनभावप्रपंचपरिहीणे सकलदुराचारनिवृत्तिकारणे परमतपश्चरणे च परमगुरुप्रसादासादितनिरंजन निजकारणपरमात्मा सदा सन्निहित इति गाथा १२७ अन्वयार्थ:-[ यस्य] जिसे [ संयमे] संयममें, [ नियमे] नियममें और [ तपसि] तपमें [आत्मा ] आत्मा [ सन्निहितः] समीप है, [तस्य ] उसे [ सामायिकं] सामायिक [ स्थायि] स्थायी है [ इति केवलिशासने ] ऐसा केवलीके शासनमें कहा है। टीका:-यहाँ (इस गाथामें ) भी आत्मा ही उपादेय है ऐसा कहा है। बाह्य प्रपंचसे पराङ्मुख और समस्त इंद्रियव्यापारको जीते हुए ऐसे जिस भावी जिनको पापक्रियाकी निवृत्तिरूप बाह्यसंयममें, काय-वचन-मनोगुप्तिरूप, समस्त इंद्रियव्यापार रहित अभ्यंतरसंयममें, मात्र परिमित (मर्यादित) कालके आचरण-स्वरूप नियममें, निजस्वरूपमें अविचल स्थितिरूप, चिन्मय-परमब्रह्ममें नियत (निश्चल रहे हुए) ऐसे निश्चयअंतर्गत-आचारमें (अर्थात् निश्चय-अभ्यंतर-नियममें), व्यवहारसे प्रपंचित (ज्ञानदर्शन–चारित्र-तप-वीर्याचाररूप) पंचाचारमें (अर्थात् व्यवहार-चारित्रमें), तथा पंचमगतिके हेतुभूत, किंचित भी परिग्रहप्रपंचसे सर्वथा रहित, सकल दुराचारकी निवृत्तिके कारणभूत ऐसे परम तपश्चरणमें (-इन सबमें) परम गुरुके प्रसादसे प्राप्त किया हुआ निरंजन निज कारण परमात्मा सदा समीप है ( अर्थात् जिस मुनिको संयममें , नियममें और तपमें *प्रपंचित = दर्शाये गये; विस्तारको प्राप्त। संयम, नियम तपमें अहो! आत्मा समीप जिसे रहे। स्थायी समायिक है उसे , यों केवली शासन कहे ।। १२७ ।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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