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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates शुद्धनिश्चय-प्रायश्चित्त अधिकार २३० उत्कृष्टो यो बोधो ज्ञानं तस्यैवात्मनश्चित्तम्। यो धरति मुनिर्नित्यं प्रायश्चित्तं भवेत्तस्य।। ११६ ।। अत्र शुद्धज्ञानस्वीकारवतः प्रायश्चित्तमित्युक्तम्। उत्कृष्टो यो विशिष्टधर्मः स हि परमबोधः इत्यर्थः। बोधो ज्ञानं चित्तमित्यनर्थान्तरम्। अत एव तस्यैव परमधर्मिणो जीवस्य प्रायः प्रकर्षेण चित्तं। यः परमसंयमी नित्यं तादृशं चित्तं धत्ते, तस्य खलु निश्चयप्रायश्चित्तं भवतीति। (शालिनी) यः शुद्धात्मज्ञानसंभावनात्मा प्रायश्चित्तमत्र चास्त्येव तस्य। निर्धूतांहःसंहतिं तं मुनीन्द्र वन्दे नित्यं तद्गुणप्राप्तयेऽहम्।। १८३ ।। अन्वयार्थ:-[ तस्य एव आत्मनः ] उसी (अनंतधर्मवाले) आत्माका [ यः] जो [ उत्कृष्ट: बोधः ] उत्कृष्ट बोध, [ज्ञानम् ] ज्ञान अथवा [ चित्तम् ] चित्त उसे [ यः मुनिः] जो मुनि [ नित्यं धरति ] नित्य धारण करता है, [ तस्य ] उसे [ प्रायश्चित्तम् भवेत् ] प्रायश्चित्त है। टीका:-यहाँ, “शुद्ध ज्ञानके स्वीकारवालेको प्रायश्चित्त है” ऐसा कहा है। उत्कृष्ट ऐसा जो विशिष्ट धर्म वह वास्तवमें परम बोध है-ऐसा अर्थ है। बोध, ज्ञान और चित्त भिन्न पदार्थ नहीं है। ऐसा होनेसे ही जो उसी परमधर्मी जीवको प्रायः चित्त है अर्थात् प्रकृष्टरूपसे चित्त (-ज्ञान) है। जो परमसंयमी ऐसे चित्तको नित्य धारण करता है, उसे वास्तवमें निश्चय-प्रायश्चित्त है। [भावार्थ:-जीव धर्मी है और ज्ञानादिक उसके धर्म है। परम चित्त अथवा परम ज्ञानस्वभाव जीवका उत्कृष्ट विशेषधर्म है। इसलिये स्वभाव-अपेक्षासे जीवद्रव्यको प्रायः चित्त है अर्थात् प्रकृष्टरूपसे ज्ञान है। जो परमसंयमी ऐसे चित्तकी ( –परम ज्ञानस्वभावकी) श्रद्धा करता है तथा उसमें लीन रहता है, उसे निश्चयप्रायश्चित्त है।] [अब ११६ वी गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज श्लोक कहते हैं:] [ श्लोकार्थ:-] इस लोकमें जो ( मुनींद्र) शुद्धात्मज्ञानकी सम्यक् भावनावंत है, उसे प्रायश्चित्त है ही। जिसने पापसमूहको खिरा दिया है ऐसे उस मुनींद्रको मैं उनके गुणोंकी प्राप्ति हेतु नित्य वंदन करता हूँ। १८३। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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