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नियमसार
इति
सुकविजनपयोजमित्रपंचेन्द्रियप्रसरवर्जितगात्रमात्रपरिग्रहश्रीपद्मप्रभमलधारिदेव-विरचितायां नियमसारव्याख्यायां तात्पर्यवृतौ परमालोचनाधिकारः सप्तमः श्रुतस्कन्धः।।
इसप्रकार, सुकविजनरूपी कमलोंके लिये जो सूर्य समान है और पाँच इंद्रियोंके विस्तार रहित देहमात्र जिन्हें परिग्रह था ऐसे श्री पद्मप्रभमलधारिदेव द्वारा रचित नियमसारकी तात्पर्यवृत्ति नामक टीकामें (अर्थात् श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्य देवप्रणीत श्री नियमसार परमागमकी निर्ग्रथ मुनिराज श्री पद्मप्रभमलधारिदेवविरचित तात्पर्यवृत्ति नामकी टीकामें ) परम-आलोचना अधिकार नामका सातवाँ श्रुतस्कंध समाप्त हुआ।
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