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विषय
सुकृतदुष्कृतरूप कर्मके संन्यासकी विधि नौ नोकषायक विजय द्वारा प्राप्त होने वाले सामायिकचारित्रका स्वरूप परम-समाधि अधिकारका उपसंहार
१०। परम-भक्ति अधिकार
रत्नत्रयका स्वरूप
व्यवहारनयप्रधान सिद्धभक्तिका स्वरूप
निज परमात्माकी भक्तिका स्वरूप निश्चययोगभक्तिका स्वरूप विपरीत अभिनिवेश रहित आत्मभाव ही निश्चयपरमयोग है, तत्संबन्धी कथन
भक्ति अधिकारनो उपसंहार
११। निश्चय-परमावश्यक अधिकार निरंतर स्ववशको निश्चय - आवश्यक होने सम्बन्धी कथन
अवश परमजिनयोगीश्वरको परम आवश्यक कर्म अवश्य है -- ऐसा कथन भेदोपचार- रत्नत्रयपरिणतिवाले जीवको अवशपना न होने सम्बन्धी कथन अन्यवश ऐसे अशुद्ध - अंतरात्मजीवका
लक्षण
अन्यवशका स्वरूप
साक्षात् स्ववश परमजिनयोगीश्वरका
स्वरूप
शुद्धनिश्चय-आवश्यककी प्राप्तिके उपायका
स्वरूप
शुद्धोपयोगसंमुख जीवको सीख आवश्यक कर्मके अभावमें तपोधन बहिरात्मा होता है, तत्संबंधी कथन
विषय
बाह्य तथा अंतर जल्पका निरास स्वात्माश्रित निश्चय धर्मध्यान और
१३१ | निश्चय- शुक्लध्यान यह दो ध्यान ही १३३ उपादेय है, तत्सम्बन्धी कथन
परम वीतराग चारित्रमें स्थित परम तपोधनका स्वरूप
१३४
समस्त वचनसंबंधी व्यापारका निरास १३५ शुद्धनिश्चयधर्मध्यानस्वरूप प्रतिक्रमण आदि ही करनेयोग्य हैं, तत्संबंधी कथन
१३६
१३७ | साक्षात् अंतर्मुख परमजिनयोगीको सीख
गाथा
१३०
१३९ | वचनसंबंधी व्यापारकी निवृत्तिके
तुका कथन सहज तत्त्वकी आराधनाकी विधि परमावश्यक अधिकारका उपसंहार
१४०
१२। शुद्धोपयोग अधिकार ज्ञानीको स्व- पर स्वरूपका कथंचित् १४२ है, तत्संबंधी कथन प्रकाशकपना
१४१
केवलज्ञान और केवलदर्शनके युगपद् १४३ प्रवर्तन संबंधी दृष्टांत द्वारा कथन आत्माके स्वपरप्रकाशकपने संबंधी १४४ विरोध कथन
१४५ एकांतसे आत्माको परप्रकाशकपना १४६ होनेकी बातका का खंडन
व्यवहारनयकी सफलता दर्शानेवाला कथन
१४७ निश्चयनयसे स्वरूपका कथन १४८ शुद्धनिश्चयनकी विवक्षासे परदर्शन का खंडन
१४९ केवलज्ञानका स्वरूप
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गाथा
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