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विषय
गाथा | विषय सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रका संपूर्ण स्वीकार
आलोचनाके स्वरूपके भेदोंका कथन करनेसे तथा मिथ्यादर्शन-ज्ञानचारित्रका संपूर्ण त्याग करनेसे मुमुक्षुको निश्चय
८। शुद्धनिश्चय-प्रायश्चित्त अधिकार प्रतिक्रमण होता है। तत्सम्बन्धी कथन ९१ | निश्चय-प्रायश्चित्तका स्वरूप
चार कषायों पर विजय प्राप्त करके निश्चय-उत्तमार्थप्रतिक्रमण स्वरूप
९२ | उपायका स्वरूप ध्यान एक उपादेय है. ऐसा कथन
९३ | ‘शुद्ध ज्ञानका स्वीकार करनेवालेको व्यवहारप्रतिक्रमणकी सफलता कब कही
| प्रायश्चित है' --ऐसा कथन जाती है, तत्सम्बन्धी कथन
| निश्चयप्रायश्चित समस्त आचरणोमें परम
आचरण है, तत्सम्बन्धी कथन ६। निश्चय-प्रत्याख्यान अधिकार
शुद्धकारणपरमात्मतत्त्वमें अंतर्मुख रहकर निश्चयनयके प्रत्याख्यानका स्वरूप
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| जो प्रतपन सो तप है, और वह तप अनंतचतुष्टयात्मक निज आत्माके ध्यानका
प्रायश्चित्त है, तत्संबंधी कथन उपदेश
९६ | निश्चयधर्मध्यान सर्व भावोंका अभाव परम भावनाके संमुख ऐसे ज्ञानीको सीख ९७ | करनेमें समर्थ है--ऐसा कथन बंधरहित आत्माको भाने सम्बन्धी सीख ९८ | शुद्धनिश्चयनियमका स्वरूप सकल विभावके संन्यासकी विधि
९९ | निश्चयकायोत्सर्गका स्वरूप सर्वत्र आत्मा उपादेय है. ऐसा कथन
१०० संसारावस्था और मुक्तिमें जीव निःसहाय
९। परम-समाधि अधिकार है--ऐसा कथन
१०१ | परम समाधिका स्वरूप एकत्वभावनारूप परिणमित सम्यग्ज्ञानी
समता बिना द्रव्यलिंगधारी श्रमणाभासको का लक्षण
१०२ किंचित् मोक्षका साधन नहीं है, तत्संबंधी
कथन आत्मगत दोषोंसे मुक्त होनेके उपायका
परमवीतरागसंयमीको सामायिकव्रत कथन
१०३ | स्थायी है, ऐसा निरूपण परम-तपोधनकी भावशुद्धिका कथन । १०४ | परममुमुक्षुका स्वरूप निश्चयप्रत्याख्यानके योग्य जीवका स्वरूप १०५ | आत्मा ही उपादेय है--ऐसा कथन निश्चय-प्रत्याख्यान अधिकारका उपसंहार | __ १०६ | रागद्वेषके अभावसे अपरिस्पंदरूपता
| होती है, तत्संबंधी कथन ७। परम-आलोचना अधिकार
आर्त-रौद्र ध्यानके परित्याग द्वारा | निश्चय-आलोचनाका स्वरूप
१०७ | सनातन सामायिकव्रतके स्वरूपका कथन
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