________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
नियमसार
१४९
अत्र शुद्धात्मनः सकलकर्तृत्वाभावं दर्शयति।
बहारंभपरिग्रहाभावादहं तावन्नारकपर्यायो न भवामि। संसारिणो जीवस्य बरारंभपरिग्रहत्वं व्यवहारतो भवति अत एव तस्य नारकायुष्कहेतुभूतनिखिलमोहरागद्वेषा विद्यन्ते, न च मम शुद्धनिश्चयबलेन शुद्धजीवास्तिकायस्य। तिर्यक्पर्यायप्रायोग्यमायामिश्राशुभकर्माभावात्सदा तिर्यक्पर्यायकर्तृत्वविहीनोऽहम्। मनुष्यनामकर्मप्रायोग्यद्रव्यभावकर्माभावान्न मे मनुष्यपर्याय: शुद्धनिश्चयतो समस्तीति। निश्चयेन देवनामधेयाधारदेवपर्याययोग्यसुरससुगंधस्वभावात्मकपुद्गलद्रव्यसम्बन्धाभावान्न मे देवपर्याय: इति।
चतुर्दशभेदभिन्नानि मार्गणास्थानानि तथाविधभेदविभिन्नानि जीवस्थानानि गुणस्थानानि वा शुद्धनिश्चयनयतः परमभावस्वभावस्य न विद्यन्ते।
मनुष्यतिर्यक्पर्यायकायवयःकृतविकारसमुपजनितबालयौवनस्थविरवृद्धावस्थाद्यनेकस्थूलकृशविविधभेदाः शुद्धनिश्चयनयाभिप्रायेण न मे सन्ति।
टीका:-यहाँ शुद्ध आत्माको सकल कर्तृत्वका अभाव दर्शाते हैं।
बहु आरंभ तथा परिग्रहका अभाव होने के कारण मैं नारकपर्याय नहीं हूँ। संसारी जीवको बहु आरंभ-परिग्रह व्यवहारसे होता है और इसलिये उसे नारक-आयुके हेतुभूत समस्त मोहरागद्वेष होते हैं, परंतु मुझे-शुद्धनिश्चयके बलसे शुद्धजीवास्तिकायको-वे नहीं हैं। तिर्यंचपर्यायके योग्य मायामिश्रित अशुभ कर्मका अभाव होनेके कारण मैं सदा तिर्यंचपर्यायके कर्तृत्व विहीन हूँ। मनुष्यनामकर्मके योग्य द्रव्यकर्म तथा भावकर्मका अभाव होनेके कारण मुझे मनुष्यपर्याय शुद्धनिश्चयसे नहीं है। 'देव' ऐसे नामका आधार जो देवपर्याय उसके योग्य सुरस-सुगंधस्वभाववाले पुद्गलद्रव्यके संबंधका अभाव होनेके कारण निश्चयसे मुझे देवपर्याय नहीं है।
चौदह भेदवाले मार्गणास्थान तथा उतने (चौदह) भेदवाले जीवस्थान या गुणस्थान शुद्धनिश्चयनयसे परमभावस्वभाववालेको (-परमभाव जिसका स्वभाव है ऐसे मुझे) नहीं है।
मनुष्य और तिर्यंचपर्यायकी कायाके, वयकृत विकारसे (-परिवर्तनसे) उत्पन्न होनेवाले बाल-युवा-स्थाविर-वृद्धावस्थादिरूप अनेक स्थूल-कृश विविध भेद शुद्धनिश्चयनयके अभिप्रायसे मेरे नहीं हैं।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com