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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates परमार्थ-प्रतिक्रमण अधिकार १५० सत्तावबोधपरमचैतन्यसुखानुभूतिनिरतविशिष्टात्मतत्त्वग्राहकशुद्धद्रव्यार्थिकनयबलेन मे सकलमोहरागद्वेषा न विद्यन्ते । सहजनिश्चयनयतः सदा निरावरणात्मकस्य शुद्धावबोधरूपस्य सहजचिच्छक्तिमयस्य सहजदृक्स्फूर्तिपरिपूर्णमूर्तेः स्वरूपाविचलस्थितिरूपसहजयथाख्यातचारित्रस्य न मे निखिलसंसृतिक्लेशहेतवः क्रोधमानमायालोभाः स्युः । अथामीषां विविधविकल्पाकुलानां विभावपर्यायाणां निश्चयतो नाहं कर्ता, न कारयिता वा भवामि, न चानुमंता वा कर्तॄणां पुद्गलकर्मणामिति । नाहं नारकपर्यायं कुर्वे, सहजचिद्विलासात्मकमात्मानमेव संचिंतये । नाहं तिर्यक्पर्यायं कुर्वे, सहजचिद्विलासात्मकमात्मानमेव संचिंतये । नाहं मनुष्यपर्यायं कुर्वे, सहजचिद्विलासात्मकमात्मानमेव संचिंतये । नाहं देवपर्यायं कुर्वे, सहजचिद्विलासात्मकमात्मानमेव संचिंतये। नाहं चतुर्दशमार्गणास्थानभेदं कुर्वे, सहजचिद्विलासात्मकमात्मानमेव संचिंतये । नाहं मिथ्यादृष्टयादिगुणस्थानभेदं कुर्वे, सहजचिद्विलासात्मकमात्मानमेव सत्ता, अवबोध, परमचैतन्य और सुखकी अनुभूतिमें लीन ऐसे विशिष्ट आत्मतत्त्वको ग्रहण करनेवाले शुद्धद्रव्यार्थिकनयके बलसे मेरे सकल मोहरागद्वेष नहीं हैं। सहज निश्चयनयसे (१) सदा निरावरणस्वरूप, (२) शुद्धज्ञानरूप, (३) सहज चित्शक्तिमय, (४) सहज दर्शनके स्फूरणसे परिपूर्ण मूर्ति ( - जिसकी मूर्ति अर्थात् स्वरूप सहज दर्शनके स्फूरणसे परिपूर्ण है ऐसे) और (५) स्वरूपमें अविचल स्थितिरूप सहज यथाख्यात चारित्रवाले ऐसे मुझे समस्त संसारकलेशके हेतु क्रोध - मान - माया - लोभ नहीं है। अब, इन (उपरोक्त ) विविध विकल्पोंसे (भेदोंसे ) भरी हुई विभावपर्यायोंका निश्चयसे मैं कर्ता नहीं हूँ, कारयिता नहीं हूँ और पुद्गलकर्मरूप कर्ताका ( - विभावपर्यायोंके कर्ता जो पुद्गलकर्म उनका—) अनुमोदक नहीं हूँ ( ऐसा वर्णन किया जाता है ) । मैं नारकपर्यायको नहीं करता, सहज चैतन्यके विलासस्वरूप आत्माको ही भाता हूँ। मैं तिर्यंचपर्यायको नहीं करता, सहज चैतन्यके विलासस्वरूप आत्माको ही भाता हूँ। मैं मनुष्यपर्यायको नहीं करता, सहज चैतन्यके विलासस्वरूप आत्माको ही भाता हूँ। मैं देवपर्यायको नहीं करता, सहज चैतन्यके विलासस्वरूप आत्माको ही भाता हूँ । मैं चौदह मार्गणास्थानके भेदोंको नहीं करता, सहज चैतन्यके विलासस्वरूप आत्माको ही भाता हूँ। मैं मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थानभेदोंको नहीं करता, सहज चैतन्यके Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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