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नियमसार
१४७
णाहं णारयभावो तिरियत्थो मणुवदेवपज्जाओ। कत्ता ण हि कारइदा अणुमंता णेव कत्तीणं।। ७७ ।। णाहं मग्गणठाणो णाहं गुणठाण जीवठाणो ण। कत्ता ण हि कारइदा अणुमंता णेव कत्तीणं ।। ७८ ।। णाहं बालो वुड्ढो ण चेव तरुणो ण कारणं तेसिं। कत्ता ण हि कारइदा अणुमंता णेव कत्तीणं।। ७९ ।। णाहं रागो दोसो ण चेव मोहो ण कारणं तेसिं। कत्ता ण हि कारइदा अणुमंता णेव कत्तीणं।। ८० ।। णाहं कोहो माणो ण चेव माया ण होमि लोहो हं। कत्ता ण हि कारइदा अनुमंता व कत्तीण।। ८१ ।।
नारक नहीं, तिर्यंच-मानव-देव पर्यय मैं नहीं। कर्ता न, कारयिता नहीं, कर्तानुमंता मैं नहीं ।। ७७।। मैं मार्गणाके स्थान नहिं, गुणस्थान-जीवस्थान नहिं । कर्ता न, कारयिता नहीं, कर्तानुमंता भी नहीं ।। ७८ ।। बालक नहीं मैं-वृद्ध नहिं, नहिं युवक तिन कारण नहीं । कर्ता न , कारयिता नहीं, कर्तानुमंता भी नहीं ।। ७९ ।। मैं राग नहिं, मैं द्वेष नहि, नहिं मोह तिन कारण नहीं । कर्ता न कारयिता नहीं, कर्तानुमंता मैं नहीं ।।८।। मैं क्रोध नहिं, मैं मान नहिं, माया नहीं, मैं लोभ नहिं । कर्ता न कारयिता नहीं, कर्तानुमोदक मैं नहीं ।। ८१।।
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