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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates 45154545454545454545454545454441451461 + परमार्थ-प्रतिक्रमण अधिकार + 卐 +555555555555555555 (वंशस्थ) नमोऽस्तु ते संयमबोधमूर्तये स्मरेभकुंभस्थलभेदनाय वै। विनेयपंकजविकाशभानवे विराजते माधवसेनसूरये।। १०८ ।। अथ सकलव्यावहारिकचारित्रतत्फलप्राप्तिप्रतिपक्षशुद्धनिश्चयनयात्मकपरमचारित्रप्रतिपादनपरायणपरमार्थप्रतिक्रमणाधिकार: कथ्यते। तत्रादौ तावत् पंचरत्नस्वरूपमुच्यते। तद्यथा अथ पंचरत्नावतारः। [अधिकारके प्रारंभमें टीकाकार मुनिराज श्री पद्मप्रभमलधारिदेव श्री माधवसेन आचार्यदेवको श्लोक द्वारा नमस्कार करते हैं: ] [ श्लोकार्थ:-] संयम और ज्ञानकी मूर्ति, कामरूपी हाथीके कुंभस्थलको भेदनेवाले तथा शिष्यरूपी कमलको विकसित करने में सूर्य समान-ऐसे हे विराजमान ( शोभायमान ) माधवसेनसूरि! आपको नमस्कार हो। १०८। अब, सकल व्यावहारिक चारित्रसे और उसके फलकी प्राप्तिसे प्रतिपक्ष ऐसा जो शुद्धनिश्चयनयात्मक परम चारित्र उसका प्रतिपादन करनेवाला परमार्थ-प्रतिक्रमण अधिकार कहा जाता है। वहाँ प्रारम्भमें पंचरत्नका स्वरूप कहते हैं। वह इसप्रकार : अब पाँच रत्नोंका अवतरण किया जाता है :--- Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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