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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates नियमसार १०९ तेषां मृतिर्भवतु वा न वा, प्रयत्नपरिणाममन्तरेण सावद्यपरिहारो न भवति। अत एव प्रयत्नपरे हिंसापरिणतेरभावादहिंसाव्रतं भवतीति। तथा चोक्तं श्रीसमन्तभद्रस्वामिभिः (शिखरिणी) "अहिंसा भूतानां जगति विदितं ब्रह्म परमं न सा तत्रारम्भोऽस्त्यणुरपि च यत्राश्रमविधौ। ततस्तत्सिद्धयर्थं परमकरुणो ग्रन्थमुभयं भवानेवात्याक्षीन्न च विकृतवेषोपधिरतः।।'' तथा हि उनका मरण हो या न हो, प्रयत्नरूप परिणाम बिना सावद्यपरिहार ( दोषका त्याग ) नहीं होता। इसीलिये, प्रयत्नपरायणको हिंसापरिणतिका अभाव होनेसे अहिंसाव्रत होता है। इसीप्रकार (आचार्यवर) श्री समंतभद्रस्वामीने (बृहत्स्वयंभूस्तोत्रमें श्री नमिनाथ भगवानकी स्तुति करते हुए ११९वें श्लोक द्वारा ) कहा है कि: __“[ श्लोकार्थ:-] जगतमें विदित है कि जीवोंकी अहिंसा परम ब्रह्म है। जिस आश्रमकी विधिमें लेश भी आरंभ है वहाँ (-उस आश्रममें अर्थात् सग्रंथपनेमें) वह अहिंसा नहीं होती। इसीलिये उसकी सिद्धिके हेतु, (हे नमिनाथ प्रभु!) परम करुणावंत ऐसे आपश्रीने दोनों ग्रंथको छोड़ दिया (-द्रव्य तथा भाव दोनों प्रकारके परिग्रहको छोड़कर निग्रंथपना अंगीकृत किया), विकृत वेश तथा परिग्रहमें रत न हुए।” ___और (५६ वी गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज श्री पद्मप्रभमलधारिदेव श्लोक कहते हैं ): * मुनिको (मुनित्वोचित) शुद्धपरिणतिके साथ वर्तता हुआ जो (हठ रहित ) देहचेष्टादिकसंबंधी शुभोपयोग वह व्यवहार-प्रयत्न है। [शुद्धपरिणति न हो वहाँ शुभोपयोग हठ सहित होता है; वह शुभोपयोग तो व्यवहार-प्रयत्न भी नहीं कहलाता।] Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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