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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates 5955555555555555555 शुद्धभाव अधिकार 步步 牙牙牙 अथेदानीं शुद्धभावाधिकार उच्यते। जीवादिबहित्तचं हेयमुवादेयमप्पणो अप्पा। कम्मोपाधिसमुब्भवगुणपज्जाएहिं वदिरित्तो।।३८ ।। जीवादिबहिस्तत्त्वं हेयमुपादेयमात्मनः आत्मा। कर्मोपाधिसमुद्भवगुणपर्यायैर्व्यतिरिक्तः ।। ३८ ।। हेयोपादेयतत्त्वस्वरूपाख्यानमेतत्। जीवादिसप्ततत्त्वजातं परद्रव्यत्वान्न ह्युपादेयम्। आत्मनः सहजवैराग्यप्रासाद- शिखरशिखामणे: परद्रव्यपराङ्मुखस्य अब शुद्धभाव अधिकार कहा जाता है। गाथा ३८ अन्वयार्थ:-[ जीवादिबहिस्तत्त्वं] जीवादि बाह्यतत्त्व [हेयम् ] हेय है; [कर्मोपाधिसमुद्भवगुणपर्यायैः ] कर्मोपाधिजनित गुणपर्यायोंसे [ व्यतिरिक्तः ] व्यतिरिक्त [आत्मा ] आत्मा [ आत्मनः ] आत्माको [ उपादेयम् ] उपादेय है। टीका:-यह, हेय और उपादेय तत्त्वके स्वरूपका कथन है। जीवादि सात तत्त्वोंका समूह परद्रव्य होने के कारण वास्तवमें उपादेय नहीं है। सहज वैराग्यरूपी महलके शिखरका जो 'शिखामणि है, परद्रव्यसे जो पराङ्मुख है, १-शिखामणि- शिखर के ऊपर का रत्न; चूड़ामणि; कलगीका रत्न है हेय सब बाह्यतत्त्व ये जीवादि, आत्मा ग्राह्य है। अरु कर्मसे उत्पन्न गुणपर्यायसे वह बाह्य है।। ३८।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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