________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
नियमसार
७३
इतिसुकविजनपयोजमित्रपंचेन्द्रियप्रसरवर्जितगात्रमात्रपरिग्रहश्रीपद्मप्रभमलधारिदेवविरचितायां नियमसारव्याख्यायां तात्पर्यवृत्तौ अजीवाधिकारो द्वितीयः श्रुतस्कन्धः।।
इसप्रकार, सुकविजनरूपी कमलोंके लिये जो सूर्य समान हैं और पाँच इंद्रियों के विस्तार रहित देहमात्र जिन्हें परिग्रह था ऐसे श्री पद्मप्रभमलधारिदेव द्वारा रचित नियमसारकी तात्पर्यवृत्ति नामकी टीकामें (अर्थात् श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्यदेवप्रणीत श्री नियमसार परमागमकी निग्रंथ मुनिराज श्री पद्मप्रभमलधारिदेव विरचित तात्पर्यवृत्ति नामकी टीकामें ) अजीव अधिकार नामका दूसरा श्रुतस्कंध समाप्त हुआ।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com