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મંગલ જ્ઞાન દર્પણ ભાગ-૧ [.] भावार्थ- संसार के प्रत्येक पदार्थ अपनी तीन काल सम्बन्धी अनन्त पर्यायो के
समूह से व्याप्त हैं। वही पदार्थ केवलज्ञानमें उसकी स्वच्छता गुण के कारण एक साथ प्रतिबिम्बित होते है। अत: जिस प्रकार एक ही दर्पण अपने उदरमें प्रतिबिम्बित नाना पदार्थों के कारण अनेकरुपताको प्राप्त होता है उसी प्रकार आपका केवलज्ञान भी अपने भीतर प्रतिबिम्बित अनन्त ज्ञेयोंकी अपेक्षा
अनन्तरुपताको प्राप्त हुआ है। [स्तुति-६,श्लोक-१६ , पृष्ठ-७४ ] [.] भावार्थ- हे देव! गुण गुणीमें अभेद विवक्षाके कारण आप स्वयं केवलज्ञानरुप
हैं। केवलज्ञान का एसा स्वभाव है कि उसमें तीन लोक और तीन काल सम्बन्धी पदार्थों का परिणमन दर्पणके समान एक साथ प्रतिबिम्बित होता है।
यह भगवान् के सर्वज्ञ स्वभावका वर्णन है। [स्तुति-६,श्लोक-१७, पृष्ठ-७४] [.] भावार्थ- केवलज्ञान इतना विशद ज्ञान है कि उसमें छोटे से छोटा और बडे से बड़ा पदार्थ स्वयमेव प्रतिबिम्बित हो जाता है।
[स्तुति-७, श्लोक-१५, पृष्ठ-८५] [ ] भावार्थ- वे पदार्थ ज्ञेयरुप होकर दर्पणमें मयुरादिके प्रतिबिम्बि के समान आपके
ज्ञानमें यद्यपि झलकते हैं तथापि आपका ज्ञान अपनी स्वभाविक सीमा का कभी उल्लंघन नहीं करता अर्थात् परमार्थ से आपका ज्ञान ज्ञान ही रहता है और ज्ञेय ज्ञेय ही रहता है, झलकनेमात्रसे ज्ञान ज्ञेयरुप नही होता है। यही कारण है कि आप कभी भी परके द्वारा अभिभूत नहीं होते है। [स्तुति-७, श्लोक-१६ , पृष्ठ-८६] अन्वयार्य- जो समस्त विश्व का अन्तरात्मामें स्पर्श कर रहे हैं अर्थात् जिनकी अन्तरात्मामें समस्त विश्व प्रतिभासित हो रहा है और जो समस्त विश्व को प्रत्यक्ष देखनेवाला हैं ऐसे होनेपर भी आपके द्वारा समस्त विश्वको कहनेके लिये वचनोंकी शक्ति न होनेके कारण समस्त पदार्थों के समूहमेंसे एक अनन्तवां भाग कहा गया है।
[स्तुति-८,श्लोक-९, पृष्ठ-९४ ] [ ] भावार्थ- ज्ञानघन आत्मा, अपनी स्वच्छतासे जिस विश्व को जानता है वह
उसके लिये पर ज्ञेय है। स्वपरावभासी ज्ञानसे युक्त होने के कारण आत्मा जिस प्रकार परज्ञेयरुप विश्वको जानता है उसी प्रकार पर से भिन्न स्व को भी जानता है।
[स्तुति-८, श्लोक-१६ , पृष्ठ-९७] [.] भावार्थ- हे भगवान! आप ज्ञायकमात्र हैं- पदार्थों को जाननेवाले हैं और
संसार के समस्त पदार्थ आपके ज्ञेय हैं। अन्तर्जेयकी अपेक्षा वे सब पदार्थ आपके ज्ञानमें जब प्रतिबिम्बित होते है तब ऐसे जान पडते है मानों आपके ज्ञानके साथ उनका तादात्म्य हो, परन्तु वास्तवमें वे आपके ज्ञानसे पृथक् हैं।