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________________ મંગલ જ્ઞાન દર્પણ ભાગ-૧ परमाध्यात्म तरंगिणी टीकाकार श्री शुभचन्द्राचार्य अनु. पं. कमलकुमारजी शास्त्री [.] .....सिद्ध परमेष्ठी के ज्ञान में किन्हीं पदार्थों का विनाश संम्भव नहीं है अर्थात् सभी पदार्थ उनके ज्ञान में अपनी -अपनी पृथक -पृथक सतारूप से ही सर्वदा प्रतिबिम्बित होते रहते हैं ऐसे सिद्ध परमात्मा को नमस्कार है। [गाथा-१, पंक्ति -१३, पृष्ठ-४] [.] .....तात्पर्य यह है कि आत्मा एक स्थान पर रहता हुआ भी अपने ज्ञानगुण से सभी चराचर ज्ञेयों को प्रति समय जानता रहता है। वे ज्ञेयभी अपने -अपने स्थान पर रहते हुए ही ज्ञान में प्रतिबिम्बित होते रहते हैं। एसा ही ज्ञान और ज्ञेयोंका परस्परमें ज्ञायक-ज्ञेय संबंध अनादित: धाराप्रवाह रूप से चला आ रहा है और इसी रूप से अनन्त काल तक चलता रहेगा। यही वस्तु स्थिति है जो त्रिकाल अबाधित है। सर्वज्ञ प्रणीत आगम से भी एसा ही प्रमाणित होता है। [गाथा-६, पंक्ति-२, पृष्ठ-१३] ......प्रतीत्याधिः प्रतिफलनं प्रतिबिम्ब, आत्मनि प्रतिभास त्वमित्यर्थः, तेन निमग्नाः- आत्मान्तर्गतः, प्रतिभासत्वधर्मेळात्मान्तर्गतत्वं न तु तदुत्पतितादात्म्य तदध्यवसायत्वेन् ते च ते भावश्च तेषां स्वभावा ? जीर्णनूतनागुरुलधुत्वादि लक्षळास्तैः, आत्मा में प्रतिबिम्ब प्रतिभास –रूप से प्राप्त , तदुत्पति, तादाम्य या तदध्यावसायरूप प्राप्त नहीं होने वाले पदार्थों के पुरातन नवीन गुरुत्व और लधुत्व आदि लक्षण स्वरूप स्वभावसे मुकुरवत्यथामूर्तस्य मुकुररस्य स्वपराकारावच्छेदिका स्वच्छतैव बहिरूष्मणस्तव प्रतिभाता ज्वाला,औष्ययं च तथा नीरूपस्यात्मनः स्वपराकारावच्छेनी ज्ञातृतैव पुद्गलानां कर्म नोकर्मेन्द्रियादीनां च।। ज्ञातृतैव पुदगलानां कर्म नोकर्मन्द्रियादीनां च दर्पण के समान जैसे मूर्त –जड दर्पण की स्वपर -अपने और परपदार्थ के आकार को प्रगट करने वाली स्वच्छता-निर्मलता ही होती है। जिसके बाह्य तेज में ज्वाला और उष्णता दोनों ही स्पष्ट रूप से चमकती रहती है। वैसे ही अमूर्तचैतन्य स्वरूप आत्मा की स्वपर-अपने तथा पर पदार्थों के आकार को निश्चित करने वाली ज्ञातृता- जाननेकी शक्ति ही होती है। [गाथा-२१, पंक्ति -१५, पृष्ठ-३५ ] [.] भावार्थ- .....व्यवहार दृष्टि में ज्ञानगुण के जरिये वह लोक तथा अलोक को निरन्तर जानता रहता है संसार का कोई भी ऐसा पदार्थ नहीं है जो आत्मा के ज्ञान से बाहिर हो वह ज्ञेय ही क्या जो आत्मा के ज्ञान गुण का विषय न हो। ज्ञेय का सीधा अर्थ यही है कि जो ज्ञान से जाना जाय। अत: सभी पदार्थ
SR No.008263
Book TitleMangal gyan darpan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhnaben J Shah
PublisherDigambar Jain Kundamrut Kahan
Publication Year2005
Total Pages469
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Education, & Religion
File Size3 MB
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