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નાટક સમયસારના પદ
दुहूंके संजोगमैं विभावकी भरनि है।।३५ ।।
જડ અને ચૈતન્યનું પૃથપણું (દોહરા) चेतन लच्छन आतमा, जड़ लच्छन तन-जाल। तनकी ममता त्यागिकै, लीजै चेतन-चाल ।।३६।।
આત્માની શુદ્ધ પરિણતિ (સવૈયા તેવીસા) जो जगकी करनी सब ठानत,
जो जग जानत जोवत जोई। देह प्रवांन पै देहसौं दूसरौ,
देह अचेतन चेतन सोई।। देह घरै प्रभु देहसौं भिन्न,
रहै परछन्न लखै नहि कोई। लच्छन वेदि विचच्छन बूझत,
अच्छनसौं परतच्छ न होई।।३७ ।।
શરીરની અવસ્થા સવૈયા તેવીસા) देह अचेतन प्रेत-दरी रज, - __रेत-भरी मल-खेतकी क्यारी। व्याधिकी पोट अराधिकी ओट,
उपाधिकी जोट समाधिसौं न्यारी।। रे जिय ! देह करै सुख हानि,
इते पर तौ ताहि लागत प्यारी। देह तौ तोहि तजेगी निदान पै,
तूही तजै किन देहकी यारी।।३८ ।।