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નાટક સમયસારના પદ
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शिष्यनो प्रश्न (वित्त) जे जे मोह करमकी परनति,
बंध-निदान कही तुम सब्ब। संतत भिन्न सुद्ध चेतनसौं,
तिन्हको मूल हेतु कहु अब्ब। कै यह सहज जीवको कौतुक,
कै निमित्त है पुग्गल दब्ब। सीस नवाइ शिष्य इम पूछत,
कहै सुगुरु उत्तर सुन भब्ब ।।३३ ।।
શિષ્યની શંકાનું સમાધાન (સવૈયા એકત્રીસા) जैसैं नाना बरन पुरी बनाइ दीजै हेठ,
उज्जल विमल मनि सूरज-करांति है। उज्जलता भासै जब वस्तुको विचार कीजै,
पुरीकी झलकसौं बरन भांति भांति है।। तैसौं जीव दरवकौं पुग्गल निमित्तरूप,
ताकी ममतासौं मोह मदिराकी मांति है। भेदग्यान द्रिष्टिसौं सुभाव साधि लीजै तहां,
सांची शुद्ध चेतना अवाची सुख सांति है।।३४।।
वणी. जैसैं महिमंडलमैं नदीको प्रवाह एक,
ताहीमैं अनेक भांति नीरकी ढरनि है। पाथरको जोर तहां धारकी मरोर होति,
कांकरकी खांनि तहां झागकी झरनि है।। पौनकी झकोर तहां चंचल तरंग ऊठ,
भूमिकी निचांनि तहां भौंरकी परनि है। तैसैं एक आतमा अनंत-रस पुदगल,