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નાટક સમયસારના પદ
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वजी. - (होड) सुन प्रानी सदगुरु कहै, देह खेहकी खांनि । धरै सहज दुख दोषकौं, करै मोखकी हानि ।।३९ ।।
वणी - (सवैया तेवीस.) रेतकीसी गढ़ी किधौं मढ़ी है मसानकीसी,
___ अंदर अंधेरी जैसी कंदग है सैलकी। ऊपरकी चमक दमक पट भूषनकी,
धौखै लागै भली जैसी कली है कनैलकी।। औगुनकी औंडी महा भौंडी मोहकी कनौडी,
मायाकी मसूरति है मूरति है मैलकी। ऐसी देह याहीके सनेह याकी संगतिसौं, __है रही हमारी मति कोल्हूकेसे बैलकी।।४०।।
वी,
ठौर ठौर रकतके कुंड केसनिके झुंड,
हानिसौं भगे जैसैं थरी है चुरेलकी। नैकुसे धकाके लगै ऐसै फटि जाय मानौ,
कागदकी पूरी किधौं चादरि है चैलकी।। सूचै भ्रम वांनि ठानि मूढनिसौं पहचांनि,
करै सुख हानि अरु खांनि बदफैलकी। ऐसी देह याही के सनेह याकी संगतिसौं,
है रही हमरी मति कोल्हूकेसे बैलकी।।४१ ।।
સંસારી જીવોની દશા ઘાણીના બળદ જેવી છે (સવૈયા એકત્રીસા) पाटी बांधी लोचनिसौं सकुचै दबोचनिसौं,
___ कोचनिके सोचसौं न बेदै खेद तनकौ । धायबो ही धंधा अरु कंधामांहि लग्यौ जोत,
बार बार आर सहै कायर है मनकौ।।