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નાટક સમયસારના પદ
छमीकौं निबल कहै दमीकौं अदत्ति कहै,
मधुर वचन बोलै तासौं कहै दीन है।। धरमीकौं दंभी निसप्रेहीकौं गुमानी कहै,
तिसना घटावै तासौं कहै भागहीन है। जहां साघुगुन देखै तिन्हकौं लगावै दोष,
ऐसौ कछु दुर्जनको हिरदौ मलीन है।।२३ ।।
મિથ્યાષ્ટિની અહંબુદ્ધિનું વર્ણન. (ચોપાઈ) मैं करता मैं कीन्ही कैसी।
__अब यौं करौं कहौ जो ऐसी। ए विपरीत भाव है जामैं।
सौ बरतै मिथ्यात दसामैं ।।२४ ।।
वजी, - (होड२) अहंबुद्धि मिथ्यादसा, धरै सौ मिथ्यावंत । विकल भयौ संसारमैं, करै विलाप अनंत ।।२५।।
મૂઢ મનુષ્ય વિષયોથી વિરક્ત હોતા નથી. (સવૈયા એકત્રીસા) रविकै उदोत अस्त होत दिन दिन प्रति,
अंजुलिकै जीवन ज्यौं जीवन घटतु है। कालकै ग्रसत छिन छिन होत छीन तन,
आरेके चलत मानौ काठ सौ कटतु है।। ऐते परि मूरख न खौजै परमारथकौं,
स्वारथकै हेतु भ्रम भारत ठटतु है। लगौ फिरै लोगनिसौं पग्यौ परै जोगनिसौं,
विषैरस भोगनिसौं नेकु न हटतु है।।२६ । ।