________________
નાટક સમયસારના પદ
પ૭૭
तैसेही अनादिको मिथ्याती जीव जगतमैं,
डोलै आठौं जाम विसराम न गहतु है। ग्यानकला भासी भयौ अंतर उदासी पै,
तथापि उदै व्याधिसौं समाधि न लहतु है।।२०।।
અધમ પુરુષનો સ્વભાવ (સવૈયા એકત્રીસા) जैसैं रंक पुरुषकै भायें कानी कौड़ी धन,
उलुवाके भायें जैसैं संझा ही विहान है। कूकरुके भायें ज्यौं पिडोर जिरवानी मठा,
सूकरके भायें ज्यौं पुरीष पकवान है।। बायसके भायें जैसैं नींबकी निंबोरी दाख,
____ बालकके भायें दंत-कथा ज्यौं पुरान है। हिंसकके भायै जैसैं हिंसामैं धरम तैसैं, ___ मूरखके भायें सुभबंध निरवान है।।२१।।
અધમાધમ પુરુષનો સ્વભાવ (સવૈયા એકત્રીસા) कुंजरकौं देखि जैसैं रोस करि भुंसै स्वान,
रोस करै निर्धन विलोकि धनवंतकौं। रैनके जगैय्याकौं विलोकि चोर रोस करै,
मिथ्यामती रोस करै सुनत सिद्धंतकौं। हंसकौं विलोकी जैसैं काग मन रोस करै,
अभिमानी रोस करै देखत महंतकौं। सुकविकौं देखि ज्यौं कुकवि मन रोस करै,
त्यौं ही दुरजन रोस करै देखि संतकौं।।२२।।
जी. सरलकौं सठ कहै वक्ताकौं धीठ कहै,
विनै करै तासौं कहै धनकौ अधीन है।