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________________ પ૭૬ નાટક સમયસારના પદ डोलै निज आतम सकति तिन हनी है।।१७ ।। ઉત્તમ, મધ્યમ, અધમ અને અધમાધમ જીવોનો સ્વભાવ (સવૈયા એકત્રીસા) उत्तम पुरुषकी दसा ज्यौं किसमिस दाख, बाहिज अभिंतर विरागी मृदु अंग है। मध्यम पुरुष नारिअरकीसी भांति लिय, बाहिज कठिन होय कोमल तरंग है।। अधम पुरुष बदरीफल समान जाकैं, बाहिरसैं दीसै नरमाई दिल संग है। अधमसैं अधम पुरुष पूंगीफल सम, अंतरंग बाहिज कठोर सरवंग है।।१८ ।। ઉત્તમ પુરુષનો સ્વભાવ (સવૈયા એકત્રીસા) कीचसौ कनक जाकै नीचसौ नरेस पद, मीचसी मिताई गरुवाई जाकै गारसी। जहरसी जोग-जाति कहरसी करामाति, हहरसी हौस पुदगल-छबि छारसी।। जालसौ जग-विलास भालसौ भुवन वास, कालसौ कुटुंब काज लोक-लाज लारसी। सीठसौ सुजसु जानै बीठसौ वखत माने, ऐसी जाकी रीति ताहि वंदत बनारसी।।१९।। મધ્યમ પુરુષનો સ્વભાવ (સવૈયા એકત્રીસા) जैसैं कोउ सुभट सुभाइ ठग-मूर खाइ, चेरा भयौ ठगनीके घेरामैं रहतु है। ठगौरी उतरि गइ तबै ताहि सुधि भई, परयौ परवस नाना संकट सहतु है।।
SR No.008260
Book TitleKalashamrut Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages609
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
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