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નાટક સમયસારના પદ
પ૭૫ આત્મામાં જ ચારે પુરુષાર્થ છે. (સવૈયા એકત્રીસા) धरमको साधन जु वस्तुको सुभाउ साथै,
___ अरथको साधन विलेछ दर्व घटमैं। यहै काम-साधन जु संग्रहै निरासपद,
सहज सरूप मोख सुद्धता प्रगटमैं । अंतरकी द्रिष्टिसौं निरंतर विलोकै बुध,
धरम अरथ काम मोख निज घटमैं। साधन आराधनकी सौंज रहै जाके संग,
भूल्यौ फिरै मूरख मिथ्यातकी अलटमैं ।।१५।।
વસ્તુનું સત્ય સ્વરૂપ અને મૂર્ખનો વિચાર (સવૈયા એકત્રીસા) तिहूँ लोकमांहि तिहूँ काल सब जीवनिको,
पूरव करम उदै आइ रस देतु है। कोउ दीरधाउ धरै कौउ अलपाउ मरे,
कोउ दुखी कोउ सुखी कोउ समचेतु है।। याहि मैं जिवायी याहि मारौ याहि सुखी करौ,
याहि दुखी करौ ऐसे मूढ़ मान लेतु है। याही अहंबुद्धिसौं न विनसै भरम भूल,
यहै मिथ्या धरम करम-बंध-हेतु है।।१६।।
वजी, जहांलौं जगतके निवासी जीव जगतमैं,
सबै असहाइ कोऊ काहूकौ न धनी है। जैसी जैसी पूरब करम-सत्ता बांधी जिन,
तैसी उदैमैं अवस्था आइ बनी है।। एतेपरि जो कोउ कहै कि मैं जिवाऊं मारूं,
इत्यादि अनेक विकलप बात धनी है। सो तौ अहंबुद्धिसौं विकल भयौ तिहूँ काल,