SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 580
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ નાટક સમયસારના પદ ૫૬ ૭. छिनभंगुर संसारविभव, परिवार-भार जसु। जहां उतपति तहां प्रलय, जासु संजोग विरह तसु।। परिग्रह प्रपंच परगट परखि, इहभव भय उपजै न चित। ग्यानी निसंक निकलंक निज, ग्यानरूप निरखंत नित ।।५० ।। ५२(भव-मय भावानो 60य. (७५) ग्यानचक्र मम लोक, जासु अवलोक मोख-सुख। इतर लोक मम नाहिं, नाहिं जिसमाहिं दोख दुख। पुन्न सुगतिदातार, पाप दुरगति पद-दायक। दोऊ खंडित खानि, मैं अखंडित सिवनायक।। इहविधि विचार परलोक-भय, नहि व्यापत वरतै सुखित। ग्यानि निसंक निकलंक निज, ___ग्यानरूप निरखंत नित ।।५१ ।। મરણનો ભય મટાડવાનો ઉપાય. (છપ્પા) फरस जीभ नासिका, नैंन अरु श्रवन अच्छ इति । मन वच तन बल तीन, स्वास उस्वास आउ-थिति।। ये दस प्रान-विनास, ताहि जग मरन कहिज्जइ। ग्यान-प्रान संजुगत, जीव तिहुं काल न छिज्जइ।। यह चिंत करत नहि मरन भय, नय-प्रवांन जिनवरकथित। ग्यानी निसंक निकलंक निज, ग्यानरूप निरखंत नित ।।५२ ।।
SR No.008260
Book TitleKalashamrut Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages609
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy