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નાટક સમયસારના પદ
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छिनभंगुर संसारविभव, परिवार-भार जसु। जहां उतपति तहां प्रलय, जासु संजोग विरह तसु।। परिग्रह प्रपंच परगट परखि,
इहभव भय उपजै न चित। ग्यानी निसंक निकलंक निज,
ग्यानरूप निरखंत नित ।।५० ।।
५२(भव-मय भावानो 60य. (७५) ग्यानचक्र मम लोक, जासु अवलोक मोख-सुख। इतर लोक मम नाहिं, नाहिं जिसमाहिं दोख दुख। पुन्न सुगतिदातार, पाप दुरगति पद-दायक। दोऊ खंडित खानि, मैं अखंडित सिवनायक।। इहविधि विचार परलोक-भय,
नहि व्यापत वरतै सुखित। ग्यानि निसंक निकलंक निज, ___ग्यानरूप निरखंत नित ।।५१ ।।
મરણનો ભય મટાડવાનો ઉપાય. (છપ્પા) फरस जीभ नासिका, नैंन अरु श्रवन अच्छ इति । मन वच तन बल तीन, स्वास उस्वास आउ-थिति।। ये दस प्रान-विनास, ताहि जग मरन कहिज्जइ। ग्यान-प्रान संजुगत, जीव तिहुं काल न छिज्जइ।। यह चिंत करत नहि मरन भय,
नय-प्रवांन जिनवरकथित। ग्यानी निसंक निकलंक निज,
ग्यानरूप निरखंत नित ।।५२ ।।