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________________ ૫૬ ૮ નાટક સમયસારના પદ વેદનાનો ભય મટાડવાનો ઉપાય. (છપ્પા) वेदनवारौ जीव, जाहि वेदत सोऊ जिय। यह वेदना अभंग, सु तौ मम अंग नांहि बिय।। करम वेदना दुविध, एक सुखमय दुतीय दुख। दोऊ मोह विकार, पुग्गलाकार बहिरमुख।। जब यह विवेक मनमहिं धरत, __तब न वेदनाभय विदित । ग्यानी निसंक निकलंक निज, ग्यानरूप निरखंत नित ।।५३ ।। અરક્ષાનો ભય મટાડવાનો ઉપાય. (છપ્પા) जो स्ववस्तु सत्तासरूप जगमहिं त्रिकालगत। तासु विनास न होइ, सहज निहचै प्रवांन मत।। सो मम आतम दरब, सखथा नहिं सहाय धर। तिहि कारन रच्छक न होइ, भच्छक न कोइ पर।। जब इहि प्रकार निरधार किय, तब अनरच्छा -भय नसित । ग्यानी निसंक निकलंक निज, ग्यानरूप निरखंत नित ।।५४ ।। यो२-(भय भावानो 30य. (छप्या) परम रूप परतच्छ, जास लच्छन चिन्मंडित। पर प्रवेश तहां नाहिं, माहिं महि अगम अखंडित ।। सो ममरूप अनूप, अकृत अनमित अटूट धन। ताहि चोर किम गहै, ठौर नहि लहै और जन।। चितवंत एम धरि ध्यान जब, तब अगुप्त भय उपसमित। ग्यानी निसंक निकलंक निज,
SR No.008260
Book TitleKalashamrut Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages609
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
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