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________________ ૫૬૬ નાટક સમયસારના પદ જ્ઞાનની નિર્ભયતા (સવૈયા એકત્રીસા) जमकौसौ भ्राता दुखदाता है असाता कर्म, ताकै उदै मूरख न साहस गहतु है सुरगनिवासी भूमिवासी औ पतालवासी, सबहीको तन मन कंपितु रहतु है । । उरकौ उजारौ न्यारौ देखिये सपत भैसौं, डोलत निसंक भयौ आनंद लहतु है । सहज सुवीर जाकौ सासतौ सरीर ऐसौ, ग्यानी जीव आरज आचारज कहतु है । ।४७।। सात भयनां नाम (छोहरा) इहभव-भय परलोक-भय, मरन-वेदना - जात । अनरच्छा अनगुप्त-भय, अकस्मात भय सात । ।४८।। સાત ભયનું પૃથક્ પૃથક્ સ્વરૂપ. (સવૈયા એકત્રીસા) दसधा परिग्रह - वियोग- चिंता इह भव, दुर्गति-गमन भय परलोक मानिये । प्राननिकौ हरन मरन- भै कहावै सोइ, रोगादिक कष्ट यह वेदना बखानिये ।। रच्छक हमारौ कोऊ नांही अनरच्छा-भय, चोर - भै विचार अनगुप्त मन आनिये । अनचिंत्यौ अबही अचानक कहाधौं होइ, ऐसौ भय अकस्मात जगतमैं जानिये । । ४९ ।। खा लव-लय भटाडवानो उपाय. (छप्पा) नख सिख मित पखांन, ग्यान अवगाह निरक्खत । आतम अंग अभंग संग, पर धन इम अक्खत ।।
SR No.008260
Book TitleKalashamrut Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages609
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
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