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નાટક સમયસારના પદ
શ્રી નાટક સમયસારના પદ શામૃત ભાગ-૫
નિર્જરા દ્વાર છ
જ્ઞાની જીવ કર્મના કર્તા નથી, (સવૈયા એકત્રીસા) *जे निज पूरब कर्म उदै,
सुख भुंजत भोग उदास रहेंगे। जे दुखमैं न विलाप करें,
निरबैर हियै तन ताप सहेंगे । ।
है जिन्हकों दिढ़ आतम ग्यान,
क्रिया करिकैं फलकौं न चहेंगे । विचच्छन ग्यायक हैं,
सु
तिन्हकौं करता हम तो न कहेंगे । । ४५ ।।
સમ્યજ્ઞાનીનો વિચાર (સવૈયા એકત્રીસા) जिन्हकी सुद्दष्टि मैं अनिष्ट इष्ट दोऊ सम,
जिन्हकौ अचार सुविचार सुभ ध्यान है । स्वास्थकौं त्यागि जे लगे हैं परमारथकौं,
जिन्हकै बनिजमैं न नफा है न ज्यान है ।। जिन्हकी समुझिमैं सरीर ऐसौ मानियत,
धानकौसौ छीलक कृपानकौसौ म्यान है । पारखी पदारथके साखी भ्रम भारथके,
तेई साधु तिनहीकौ जथारथ ग्यान है ।।४६ ।।
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