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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates दर्शनपाहुड] आगे कहते हैं कि -इस सम्यग्दर्शनसे ही कल्याण-अकल्याणका निश्चय होता है: सम्मत्तादो णाणं णाणादो सव्वभावउवलद्धी। उवलद्धपयत्थे पुण सेयासेयं वियाणेदि।।१५।। सम्यक्त्वात् ज्ञानं ज्ञानात् सर्वभावोपलब्धिः। उपलब्धपदार्थे पुन: श्रेयोऽश्रेयो विजानाति।।१५।। अर्थ:--सम्यक्त्वसे तो ज्ञान सम्यक् होता है; तथा सम्यक्ज्ञानसे सर्व पदार्थों की उपलब्धि अर्थात् प्राप्ति अर्थात् जानना होता है; तथा पदार्थों की उपलब्धि होने से श्रेय अर्थात् कलयाण, अश्रेय अर्थात् अकल्याण इस दोनोंको जाना जाता है। भावार्थ:--सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान को मिथ्याज्ञान कहा है. इसलिये सम्यग्दर्शन होने पर ही सम्यग्ज्ञान होता है, और सम्यग्ज्ञानसे जीवादि पदार्थों का स्वरूप यथार्थ जाना जाता है। तथा सब पदार्थों का यथार्थ स्वरूप जाना जाये तब भला-बुरा मार्ग जाना जाता है। इसप्रकार मार्ग के जानने में भी सम्यग्दर्शन ही प्रधान है ।।१५।। आगे, कल्याण-अकल्याण को जानने से क्या होता है सो कहते हैं: सेयोसेयविदण्हू उद्धददुस्सील सीलवंतो वि। सीलफलेणब्भुदयं तत्तो पुण लहइ णिव्वाणं।। १६ ।। श्रेयोऽश्रेयवेत्ता उद्धृतदुःशील: शीलवानपि। शीलफलेनाभ्युदयं ततः पुनः लभते निर्वाणम्।।१६।। अर्थः--कल्याण और अकल्याण मार्गको जाननेवाला पुरुष 'उद्धृतदुःखशीलः' अर्थात् जिसने मिथ्यात्व स्वभाव को उड़ा दिया है -ऐसा होता है; तथा 'शीलवानपि' अर्थात् सम्यक्स्वभाव युक्त भी होता है, तथा उस सम्यक्स्वभावके फलसे अभ्युदय को प्राप्त होता है, तीर्थंकरादि पद प्राप्त करता है, तथा अभ्युदय होनेके पश्चात् निर्वाण को प्राप्त होता है। सम्यक्त्वथी सुज्ञान, जेथी सर्व भाव जणाय छे, ने सौ पदार्थो जाणतां अश्रेय-श्रेय जणाय छ। १५ । अश्रेय-श्रेयसुण छोडी कुशील धारे शीलने, ने शीलफलथी होय अभ्युदय, पछी मुक्ति लहे। १६ । Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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