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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates शीलपाहुड] /३६९ आगे कहते हैं कि जब ज्ञान प्राप्त करके इसप्रकार करे तब संसार कटे:--- जे पुण विसयविरत्ता णाणं णाऊण भावणासहिदा। छिंदंति चादुरगदिं तवगुणजुत्ता ण संदेहो।।८।। ये पुनः विषयविरक्ताः ज्ञानं ज्ञात्वा भावनासहिताः। छिन्दन्ति चतुर्गतिं तपोगुण युक्ताः न संदेहः।।८।। अर्थ:--जो ज्ञान को जानकर और विषयों से विरक्त होकर ज्ञानकी बारबार अनुभवरूप सहित होते हैं वे तप और गुण अर्थात् मूलगुण उत्तरगुणयुक्त होकर चतुर्गतिरूप संसार को छेदते हैं, इसमें संदेह नहीं है। भावार्थ:--ज्ञान प्राप्त करके विषय-कषाय छोड़कर ज्ञान की भावना करे, मूलगुणउत्तरगुण ग्रहण करके तप करे वह संसार का अभाव करके मुक्तिरूप निर्मलदशा को प्राप्त होता है--यह शीलसहित ज्ञानरूप मार्ग है।। ८।। आगे इसप्रकार शीलसहित ज्ञानसे जीव शुद्ध होता है उसका दृष्टांत कहते हैं: जह कंचणं विसुद्ध धम्मइयं खडियलवणलेवेण। तह जीवो वि विसुद्धं णाणविसलिलेण विमलेण।।९।। यथा कांचनं विशुद्धं धमत् खटिकालवणलेपेन। तथा जीवोऽपि विशुद्धः ज्ञानविसलिलेन विमलेन।।९।। अर्थ:--जैसे कांचन अर्थात् सुवर्ण खडिया अर्थात् सुहागा [ – खडिया क्षार ] और नमक के लेप से विशुद्ध निर्मल कांतियुक्त होता है वैसे ही जीव भी विषय-कषायों के मलरहित कर कर्मरहित विशुद्ध होता है। भावार्थ:--ज्ञान आत्माका प्रधान गुण है परन्तु मिथ्यात्व विषयों से मलिन है, पण विषयमांही विरक्त,जाणी ज्ञान, भावनयुक्त जे, निःशंक ते तप गुण सहित छेदे चतुर्गतिभ्रमणने। ८। धमतां लवण-खडी लेपपूर्वक कनक निर्मळ थाय छे, त्यम जीव पण सुविशुद्ध ज्ञानसलिलथी निर्मळ बने छ। ९ । Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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