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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates भावपाहुड ] [ २६१ भावार्थ––सम्यग्दृष्टि पुरुष के मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी कषाय का तो सर्वथा अभाव ही है, अन्य कषायोंका यथासंभव अभाव है। मिथ्यात्व अनन्तानुबन्धीके अभाव से ऐसा भाव होता है। यद्यपि परद्रव्यमात्र के कर्तृत्वकी बुद्धि तो नहीं है, परन्तु शेष कषायोंके उदय से कुछ रागद्वेष होता है, उसको कर्मके उदय के निमित्तसे हुए जानता है, इसलिये उसमें भी कर्तृत्वबुद्धि नहीं है, तो भी उन भावोंको रोगके समान हुए जानकर अच्छा नहीं समझता है। इसप्रकार अपने भावोंसे ही कषाय-विषयोंसे प्रीति - बुद्धि नहीं है, इसलिये उनसे लिप्त नहीं होता है, जलकमलवत् निर्लेप रहता है। इससे आगामी कर्मका बन्ध नहीं होता है, संसारकी वृद्धि नहीं होती है, ऐसा आशय है । । १५४ ।। आगे कहते हैं कि जो पूर्वोक्त भाव सहित सम्यग्दृष्टि सत्परुष हैं वे ही सकल शील संयमादि गुणोंसे संयुक्त हैं, अन्य नहीं हैं: ते 'च्चिय भणामि हं जे सयलकला सीलसंजमगुणेहिं । बहुदोसाणावासो सुमलिणचित्तो ण सावयसमो सो । । १५५ । । तानेव च भणामि ये सकलकलाशीलसंयमगुणैः । बहुदोषाणामावासः सुमलिन चित्तः न श्रावकसमः सः ।। १५५ ।। अर्थः--पूवोक्त भाव सहित सम्यग्दृष्टि पुरुष हैं और शील संयम गुणोंसे सकल कला अर्थात् संपूर्ण कलावान होते हैं, उनही को हम मुनि कहते हैं। जो सम्यग्दृष्टि नहीं हैं, मलिनचित्त सहित मिथ्यादृष्टि हैं और बहुत दोषोंका आवास (स्थान) है वह तो भेष धारण करता है तो भी श्रावकके समान भी नहीं है। भावार्थ:--जो सम्यग्दृष्टि है और शील ( - उत्तरगुण) तथा संयम ( - मूलगुण) सहित है वह मुनि है। जो मिथ्यादृष्टि है अर्थात् जिसका चित्त मिथ्यात्व से मलिन है और जिसमें क्रोधादि विकाररूप बहुत दोष पाये जाते हैं, वह तो मुनि का भेष धारण करता है तो भी श्रावकके समान भी नहीं है, श्रावक सम्यग्दृष्टि हो और गृहस्थाचारके पाप सहित हो तो भी उसके बराबर वह–केवल भेष मात्रको धारण करने वाला मुनि -- नहीं है, ऐसा आचार्य ने कहा है।। १५५ ।। १ पाठान्तर: - चिय। २ पाठान्तरः - तान् अपि कहुं तेज मुनि जे शीलसंयमगुण - समस्तकळा-धरे, जे मलिनमन बहुदोषघर, ते तो न श्रावकतुल्य छे । १५५ । Please inform us of any errors on rajesh@Atma Dharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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