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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates २६२] [अष्टपाहुड आगे कहते हैं कि सम्यग्दृष्टि होकर जिनने कषायरूप सुभट जीते वे ही धीरवीर हैं:-- ते धीर वीर पुरिसा खमदमखग्गेण विप्फुरं तेण। दुज्जयपबल बलुद्धर कसायभड णिज्जिया जेहिं।। १५६ ।। ते धीर वीर पुरुषाः क्षमादमखड्गेण विस्फुरता। दुर्जयप्रबलबलोद्धतकषायभटाः निर्जिता यैः।। १५६ ।। अर्थ:--जिन पुरुषोंने क्षमा और इन्द्रियोंका दमन वह ही हुआ विस्फुरता अर्थात् सजाया हुआ मलिनता रहित उज्ज्वल तीक्षण खड्ग, उससे जिनको जीतना कठिन है ऐसे दुर्जय, प्रबल तथा बलसे उद्धत कषायरूप सुभटों को जीते, वे ही धीरवीर सुभट हैं, अन्य संग्रामादिक में जीतनेबाले तो ‘कहने के सुभट' हैं। भावार्थ:--युद्ध में जीतनेवाले शूरवीर तो लोकमें बहुत हैं, परन्तु कषायों को जीतनेवाले विरले हैं, वे मुनिप्रधान हैं और वे ही शूरवीरों में प्रधान हैं। जो सम्यग्दृष्टि होकर कषायोंको जीतकर चारित्रवान् होते हैं वे मोक्ष पाते हैं, ऐसा आशय है।। १५६ ।। आगे कहते हैं कि जो आप दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप होते हैं वे अन्यको भी उन सहित करते हैं, उनको धन्य है:--- धण्णा ते भगवंता दंसणणाणग्गपवरहत्थेहिं। विसयमयरहरपडिया भविया उत्तारिया जेहिं।। १५७ ।। ते धन्याः भगवंत: दर्शनज्ञानाग्रप्रवरहस्तैः। विषयमकरधरपतिताः भव्याः उत्तारिताः यैः।। १५७ ।। अर्थ:--जिन सत्परुषों ने विषयरूप मकरधर ( समुद्र) में पड़े हुए भव्यजीवोंको - दर्शन और ज्ञानरूपी मुख्य दोनों हाथोंसे - पार उतार दिया, वे मुनिप्रधान भगवान् ते धीरवीर नरो, क्षमादम-तीक्ष्णखड़गे जेमणे, क्वत्या सुदुजेय-उग्रबळ-मदमत्त-सुभट-कषायने। १५६ । छे धन्य ते भगवंत, दर्शन ज्ञान-उत्तम कर वडे, जे पार करता विषयमकराकरपतित भवि जीवने। १५७ । Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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