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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates बोधपाहुड ] [304 भावार्थ:--इसप्रकार तीन गाथा में 'आयतन' का स्वरूप कहा । पहिली गाथा तो संयमी सामान्यका बाह्यरूप प्रधानता से कहा। दूसरीमें अंतरंग - बाह्य दोनोंकी शुद्धतारूप ऋद्धिधारी मुनि ऋषीश्वर कहा और इस तीसरी गाथामें केवलज्ञानीको, जो मुनियोंमें प्रधान है, ‘सिद्धायतन' कहा है। यहाँ इसप्रकार जानना जो 'आयतन' अर्थात् जिसमें बसे, निवास करे उसको आयतन कहा है, इसलिये धर्मपद्धतिमें जो धर्मात्मा पुरुषके आश्रय करने योग्य हो वह 'धर्मायतन' है। इसप्रकार मुनि ही धर्मके आयतन हैं, अन्य कोई भेषधारी, पाखंडी, ( - ढोंगी ) विषय-कषायोंमें आसक्त, परिग्रहधारी धर्मके आयतन नहीं हैं, तथा जैन मतमें भी जो सूत्रविरुद्ध प्रवर्तते हैं वे भी आयतन नहीं हैं, वे सब 'अनायतन' हैं । बौद्धमतमें पाँच इन्द्रिय, उनके पाँच विषय, एक मन, एक धर्मायतन शरीर ऐसे बारह आयतन कहे हैं वे भी कल्पित हैं, इसलिये जैसा यहाँ आयतन कहा वैसा ही जानना; धर्मात्मा को उसी का आश्रय करना, अन्यकी स्तुति, प्रशंसा, विनयादिक न करना, यह बोधपाहुड ग्रन्थ करने का आशय है। जिसमें इसप्रकार के निर्ग्रन्थ मुनि रहते हैं ऐसे क्षेत्रको भी 'आयतन' कहते हैं, जो व्यवहार है ।। ७ ।। [२] आगे चैत्यगृह का निरूपण करते हैं:-- बुद्धं जं बोहंतो अप्पाणं चेदयाइं अण्णं च। पंचमहव्वय सुद्धं णाणमयं जाण चेदिहरं । । ८ ।। बुद्धं यत् बोधयन् आत्मानं चैत्यानि अन्यत् च । पंचमहाव्रतशुद्धं ज्ञानमयं जानीहि चैत्यगृहम् ।। ८ ।। अर्थः--जो मुनि ‘बद्ध' अर्थात् ज्ञानमयी आत्माको जानता हो, अन्य जीवोंको ‘चैत्य’ अर्थात् चेतना स्वरूप जानता हो, आप ज्ञानमयी हो और पाँच महाव्रतहोसे शुद्ध हो, निर्मल हो, उस मुनिको हे भव्य ! तू ‘चैत्यगृह' जान। भावार्थ:-- जिसमें अपनेको और दूसरे को जाननेवाला ज्ञानी, निष्पाप - निर्मल इसप्रकार ‘चैत्य' अर्थात् चेतनास्वरूप आत्मा रहता है, वह 'चैत्यगृह ' है । इसप्रकार का चैत्यगृह संयमी मुनि है, अन्य पाषाण आदिके मंदिरको 'चैत्यगृह' कहना व्यवहार है ।। ८ ।। स्वात्मा-परात्मा-अन्यने जे जाणतां ज्ञान ज रहे, छे चैत्यगृह, ते ज्ञानमूर्ति, शुद्ध पंचमहाव्रते। ८ । Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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