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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १०४] । अष्टपाहुड आगे फिर कहते हैं:-- मयरायदोस मोहो कोहो लोहो य जस्स आयत्ता। पंचमहव्वयधारी आयदणं महरिसी भणियं ।।६।। मदः रागः द्वेष: क्रोधः लोभः च यस्य आयत्ताः। पंचमहाव्रतधारी आयतनं महर्षयो भणिताः।।६।। अर्थ:--जिन मुनि के मद, राग, द्वेष, मोह, क्रोध, लोभ और चकारसे माया आदि ये सब 'आयत्ता' निग्रह को प्राप्त हो गये और पाँच महाव्रत जो अहिंसा, सत्य, अचौर्य, बह्मचर्य तथा परिग्रहका त्याग उनका धारी हो, ऐसा महामुनि ऋषीश्वर 'आयतन' कहा है। भावार्थ:--पहिली गाथा में तो बाह्य का स्वरूप कहा था। यहाँ बाह्य-आभ्यांतर दोनों प्रकार से संयमी हो वह 'आयतन' है इसप्रकार जानना चाहिये।। ६।। आगे फिर कहते हैं:-- सिद्धं जस्स सदत्थं विसुद्धझाणस्स णाणजुत्तस्स। सिद्धायदणं सिद्धं मुणिवरवसहस्स मुणिदत्थं ।।७।। सिद्धं यस्य सदर्थं विशुद्धध्यानस्य ज्ञानयुक्तस्य। सिद्धायतनं सिद्धं मुनिवरवृषभस्य मुनितार्थम्।।७।। अर्थ:--जिस मुनि के सदर्थ अर्थात् समीचीन अर्थ जो ‘शुद्ध आत्मा' सो सिद्ध हो गया हो वह सिद्धायतन है। कैसा है मुनि ? जिसके विशुद्ध ध्यान है, धर्मध्यानको साध कर शुक्लध्यानको प्राप्त हो गया है; ज्ञानसहित है, केवलज्ञानको प्राप्त हो गया है। घातियाकर्मरूप मल से रहित है इसलिये मुनियोंमें ‘वृषभ' अर्थात् प्रधान है, जिसने समस्त पदार्थ जान लिये हैं। इसप्रकार मुनिप्रधानको ‘सिद्धायतन' कहते हैं। आयत्त जस मदोध-लोभ-विमोह-राग-विरोध छे, ऋषिवर्य पंचमहाव्रती ते आयतन निर्दिष्ट छ। ६। सुविशुद्धध्यानी, ज्ञानयुत, जेने सुसिद्ध सदर्थ छे, मुनिवरवृषभ ते मळरहित सिद्धायतन विदितार्थ छ। ७। सुविशुखधयानी ज्ञानयत सि होने सृसिखासदर्थ छे. Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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