SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates बोधपाहुड] [ १०३ अर्थ:--१ - आयतन, २- चैत्यगृह, ३- जिनप्रतिमा, ४- दर्शन, ५- जिनबिंब। कैसा हैं जिनबिंब ? भले प्रकार वीतराग है, ६- जिनमुद्रा राग सहित नहीं होती हैम ७- ज्ञान पद कैसा है ? आत्मा ही है अर्थ अर्थात् प्रयोजन जिसमें, इसप्रकार सात तो ये निश्चय, वीरतागदेव ने कहे वैसे तथा अनुक्रम से जानना और ८- देव , ९- तीर्थ , १०- अरहंत तथा गुणसे विशुद्ध ११प्रवज्या, ये चार जो अरहंत भगवानने कहे वैसे इस ग्रन्थमें जानना, इसप्रकार ये ग्यारह स्थल हुए।। ३-४।। भावार्थ:--यहाँ आशय इसप्रकार जानना चाहिये कि--धर्ममार्गमें कालदोषसे अनेक मत हो गये हैं तथा जैनमतमें भी भेद हो गये हैं, उनमें आयतन आदि में विपर्यय ( हुआ है, उनका परमार्थभूत सच्चा स्वरूप तो लोग जानते नहीं हैं और धर्मके लोभी होकर जैसी बाह्य प्रवृत्ति देखते हैं उसमें ही प्रवर्तने लग जाते हैं, उनको संबोधने के लिये यह 'बोधपाहुड' बनाया है। उसमें आयतन आदि ग्यारह स्थानोंका परमार्थभूत सच्चा स्वरूप जैसा सर्वज्ञदेवने कहा है वैसा कहेंगे, अनुक्रम से जैसे नाम कहें हैं वैसे ही अनुक्रमसे इनका व्यख्यान करेंगे सो जानने योग्य है।। ३-४।। [१] आगे प्रथम ही जो आयतन कहा उसका निरूपण करते हैं:-- मणवयणकायदव्वा आयत्ता' जस्स इन्दिया विसया। आयदणं जिणमग्गे णिद्दिटुं संजय रूवं ।।५।। मनो वचन काय द्रव्याणि आयत्ताः यस्य ऐन्द्रियाः विषयाः। आयतनं जिनमार्गे निर्दिष्टं संयतं रूपम्।।५।। अर्थ:--जिनमार्ग में संयमसहित मुनिरूप है उसे 'आयतन' कहा है। कैसा है मुनिरूप ? --जिसके मन-वचन-काय द्रव्यरूप है वे, तथा पांच इन्द्रियोंके स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, शब्द ये विषय हैं वे. 'आयत्ता' अर्थात अधीन हैं -वशीभत हैं। उनके (मन-वचन-क इन्द्रियोंके विषय) संयमी मुनि आधीन नहीं है, वे मुनिके वशीभूत हैं। ऐसा संयमी है वह 'आयतन' है।।५।। १ सं० प्रति में 'आसत्ता' पाठ है जिसकी संस्कृत 'आसक्ताः' है। आयत्त छे मन-वचन-काया इन्द्रिविषयो जेहने, ते संयमीनु रूप भाख्यु आयतन जिनशासने। ५। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy