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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates चारित्रपाहुड] [९१ अर्थ:--महल्ला अर्थात् महन्त पुरुष जिनको साधते हैं---आचरण करते हैं और पहिले भी जिनका महन्त पुरुषोंने आचरण किया है तथा ये व्रत आप ही महान है क्योंकि इनमें पापका लेश भी नहीं है---इसप्रकार ये पाँच महाव्रत हैं। भावार्थ:--जिनका बड़े पुरुष आचरण करें और आप निर्दोष हों वे ही बड़े कहलाते हैं, इसप्रकार इन पाँच व्रतों को महाव्रत संज्ञा है।। ३१ ।। आगे इन पाँच व्रतोंकी पच्चीस भावना कहते हैं, उनमें से ही अहिंसाव्रत की पाँच भावना कहते हैं:-- वयगुत्ती मणगुत्ती इरियासमिदी सुदाणणिक्खेवो। अवलोयभोयणाए अहिंसए भावणा होति।।३२।। वचोगुप्तिः मनोगुप्तिः ईर्यासमितिः सुदाननिक्षेपः। अवलोक्यभोजनेन अहिंसाया भावना भवंति।।३२।। अर्थ:--वचनगुप्ति और मनोगुप्ति ऐसे दो तो गुप्तियाँ, ईयासमिति, भले प्रकार कमंडलु ग्रहण - निक्षेप यह आदाननिक्षेपणा समिति और अच्छी तरह देखकर विधिपूर्वक शुद्ध भोजन करना यह एषणा समिति, ---इसप्रकार ये पाँच अहिंसा महाव्रतकी भावना हैं। भावार्थ:--भावना नाम बारबार उसही के अभ्यास करने का है, सो यहाँ प्रवृत्तिनिवृत्तिमें हिंसा लगती है, उसका निरन्तर यत्न रखे तब अहिंसाव्रतका पालन हो, इसलिये यहाँ योगोंकी निवृत्ति करनी तो भले प्रकार गुप्तिरूप करनी और प्रवृत्ति करनी तो समितिरूप करनी, ऐसे निरन्तर अभ्याससे अहिंसा महाव्रत दृढ़ रहता है, इसी आशयसे इनको भावना कहते हैं।। ३२।। आगे सत्य महाव्रत की भावना कहते हैं :-- ------------------- मन-वचनगुप्ति, गमनसमिति, सुदाननिक्षेपण अने अवलोकीने भोजन-अहिंसा भावना ओ पांच छ। ३२। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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