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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १२] । अष्टपाहुड कोहभयहासलोहा मोहा विवरीय भावणा चेव। विदियस्स भावणाए ए पंचैव य तहा होति।।३३।। क्रोध भय हास्य लोभ मोहा विपरीतभावनाः च एव। द्वितीयस्य भावना इमा पंचेव च तथा भवंति।।३३।। अर्थ:--क्रोध, भय, हास्य, लोभ और मोह इनसे विपरीत अर्थात् उलटा इनका अभाव ये द्वितीय व्रत सत्य महाव्रत की भावना है। भावार्थ:--असत्य वचनकी प्रवृत्ति क्रोधसे, भयसे, हास्यसे, लोभसे और परद्रव्यके मोहरूप मिथ्यात्वसे होती है, इनका त्याग हो जानेपर सत्य महाव्रत दृढ़ रहता है। तत्त्वार्थसूत्र में पाँचवीं भावना अनुवीचीभाषण कही है, सो इसका अर्थ यह है किजिनसूत्रके अनुसार वचन बोले और यहाँ मोहका अभाव कहा। वह मिथ्यात्वके निमित्तसे सूत्रविरुद्ध बोलता है, मिथ्यात्वका अभाव होनेपर सूत्रविरुद्ध नहीं बोलता है, अनुवीचीभाषणका यही अर्थ हुआ इसमें अर्थ भेद नहीं है।। ३३ ।। आगे अचौर्य महाव्रत भावना कहते हैं:-- सुण्णायारणिवासो 'विमोचियावास जन परोधं च। एसणसुद्धिसउत्तं साहम्मीसंविसंवादो।।३४।। शून्यागारनिवास: विमोचित्तावासः यत् परोधं च। एषणाशुद्धिसहितं साधर्मिसमविसंवादः।। ३४ ।। अर्थ:--शून्यागार अर्थात् गिरि, गुफा, तरु, कोटरादिमें निवास करना, १ पाठान्तर :- विमोचितावास। जे क्रोध, भय ने हास्य तेमज लोभ-मोह-कुभाव छे, तेना विपर्ययभाव ते छे भावना बीजा व्रते। ३३ । सूना अगर तो त्यक्त स्थाने वास, पर-उपरोध ना, आहार अषणशुद्धियुत, साधी सह विखवाद ना। ३४। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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