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________________ ४२ श्रमण भगवान् महावीर मेरे रानीपन की क्या सार्थकता हुई जब कि भगवान् महावीर महीनों से राजधानी में घूमते हैं पर उनके अभिग्रह का पता नहीं लगाया जाता ? आज तक किसी ने यह नहीं सोचा कि ये आहार ग्रहण क्यों नहीं करते ।' राजा शतानीक ने रानी को आश्वासन दिया और अपने सभापण्डित तथ्यवादी को बुला कर कहा-'महाशय ! तुम्हारे धर्मशास्त्रों में जो जो आचार वर्णित हों उनका निरूपण करो ।' सुगुप्त की तरफ इशारा कर शतानीक बोला—'तुम भी तो बुद्धिमान हो । जानते हो तो कहो ।' उन्होंने कहा-'अभिग्रह अनेक प्रकार के होते हैं पर यह कैसे जाना जाय कि किसके मन का क्या अभिप्राय है ?' उन्होंने द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावविषयक अभिग्रह तथा सात पिण्डैषणा पानैषणाओं का निरूपण कर साधुओं के आहार-पानी लेने देने की रीतियों का वर्णन किया । राजा ने प्रजाजनों को इन बातों की जानकारी कराई और भगवान् के आने पर इन रीतियों से आहार-पानी देने की सूचना की। लोगों ने सावधानी से उनका पालन किया । परन्तु भगवान् को भिक्षा देने में कोई सफल नहीं हो सका । भगवान् के अभिग्रह को पाँच महीने हो चुके थे और छठा महीना पूरा होने में सिर्फ पाँच दिन शेष रह गये थे । भगवान् नियमानुसार इस दिन भी कोशाम्बी में भिक्षा-चर्या के लिए निकले और फिरते हुए सेठ धनावह के घर पहुँचे । यहाँ आपका अभिग्रह पूर्ण हुआ और आपने चन्दना नामक राजकुमारी के हाथों भिक्षा ग्रहण की । कोशाम्बी से सुमंगल, सुच्छेत्ता, पालक आदि गाँवों में होते हुए भगवान् चम्पा नगरी पधारे और चातुर्मासिक तप कर वहीं स्वातिदत्त ब्राह्मण की यज्ञशाला में वर्षावास किया । ___ यहाँ पर भगवान् के तप-साधन से आकृष्ट होकर पूर्णभद्र और माणिभद्र नामक दो यक्ष रात्रि के समय आकर आपकी पूजा करने लगे । स्वातिदत्त को जब इस बात का पता चला तो वह भगवान् से धर्म चर्चा करने आया और बोला-महाराज ! 'आत्मा' क्या वस्तु है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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