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तपस्वी-जीवन
४३ महावीर-जो 'मैं' शब्द का वाच्यार्थ है वही आत्मा है अर्थात् मैं सुखी, मैं दुःखी इत्यादि वाक्यों में 'मैं' शब्द से जिस पदार्थ की प्रतीति होती है वही 'आत्मा' है।
स्वातिदत्त-आत्मा का क्या स्वरूप है ? उसका क्या लक्षण है ?
महावीर-आत्मा अति सूक्ष्म और रूपातीत है । इसका लक्षण 'चेतना' है।
स्वातिदत्त—सूक्ष्म का अर्थ क्या है ? महावीर-जो इन्द्रियों से न जाना जाय । स्वातिदत्त—-शब्द, गन्ध और वायु ऐसे माने जा सकते हैं ?
महावीर-नहीं, शब्द श्रोत्रग्राह्य है, गन्ध नासिका का विषय है और वायु का स्पर्शेन्द्रिय से प्रत्यक्ष होता है । जो किसी भी इन्द्रिय का विषय न हो वह 'सूक्ष्म' है।
स्वातिदत्त-तो क्या 'ज्ञान' का नाम आत्मा है ?
महावीर-'ज्ञान' आत्मा का असाधारण गुण है । जिसमें यह ज्ञान हो वह 'ज्ञानी' आत्मा कहलाता है ।
स्वातिदत्त महाराज ! 'प्रदेशन' का क्या अर्थ है ?
महावीर-'प्रदेशन' का अर्थ है उपदेश और वह दो प्रकार का हैधार्मिक प्रदेशन और अधार्मिक प्रदेशन ।
स्वातिदत्त-महाराज ! 'प्रत्याख्यान' किसे कहते हैं ?
महावीर-प्रत्याख्यान का अर्थ है निषेध । प्रत्याख्यान भी दो प्रकार का है-मूलगुणप्रत्याख्यान और उत्तरगुणप्रत्याख्यान । आत्मा के दया, सत्यवादिता आदि मूल-स्वाभाविक गुणों की रक्षा तथा हिंसा, मृषावादिता आदि वैभाविक प्रवृत्तियों का त्याग मूलगुणप्रत्याख्यान है और मूलगुणों के सहायक सदाचार के प्रतिकूल वर्तन के त्याग का नाम है उत्तरगुणप्रत्याख्यान ।
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