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________________ ४४ श्रमण भगवान् महावीर उक्त प्रश्नोत्तरों से स्वातिदत्त को विश्वास हो गया कि देवार्य कोरे तपस्वी ही नहीं ज्ञानी भी हैं । चातुर्मास्य के बाद भगवान् विचरते हुए जंभियगाँव में पधारे । १३. तेरहवाँ वर्ष जंभियगाँव में कुछ समय ठहर कर भगवान् वहाँ से मिढिय होते हुए छम्माणि गये और गाँव के बाहर कायोत्सर्ग ध्यान किया । सन्ध्या के समय एक ग्वाला भगवान् के समीप बैल छोड़ कर गाँव में चला गया और जब वह वापस लौय तो उसे बैल वहाँ नहीं मिले । उसने भगवान् से पूछा'देवार्य ! मेरे बैल कहाँ हैं ? भगवान् मौन रहे । इस पर उस ग्वाले ने क्रुद्ध होकर भगवान् के दोनों कानों में काठ के कीले ठोक दिए । ____ छम्माणि से भगवान मध्यमा पधारे और भिक्षाचर्या में फिरते हुए सिद्धार्थ वणिक के घर गये । सिद्धार्थ अपने मित्र खरक वैद्य से बातें कर रहा था । भगवान् को देख कर वह उठा और आदरपूर्वक वन्दन किया । उस समय भगवान् को देख कर खरक बोला-भगवान् का शरीर सर्वलक्षण संपन्न होते हुए भी सशल्य है । सिद्धार्थ ने कहा-मित्र भगवान् के शरीर में कहाँ क्या शल्य है ? जरा देखो तो सही । देख कर खरकने कहा-यह देखो, भगवान् के कानों में किसीने कटशलाकायें ठोंक दी हैं । सिद्धार्थ-देवानुप्रिय ! शलाकायें जल्दी निकाल डालो । महातपस्वी को आरोग्य पहुँचाने से हमें बड़ा पुण्य होगा । - वैद्य और वणिक शलाका निकालने के लिए तैयार हुए पर भगवान् ने स्वीकृति नहीं दी और आप वहाँ से चल दिये । __ भगवान् के स्थान का पता लगा कर सिद्धार्थ और खरक औषध तथा आदमियों को साथ लेकर उद्यान में गये और भगवान् को तैलद्रोणी में बिठाकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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