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तपस्वी - जीवन
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तेल की मालिश करवाई । फिर अनेक मनुष्यों से पकड़वा कर कानों में से कटशलाकायें खींच निकलवाईं । शलाका निकालते समय भगवान् के मुख से एक भीषण चीख निकल पड़ी ।
इस प्रकार विषम उपसर्ग तथा घोर परीषहों को सहते हुए और विविध तप-ध्यान का निरन्तर अभ्यास करते हुए दृढ़-प्रतिज्ञा वीर भगवान् ने साढ़े बारह वर्ष से कुछ अधिक समय तक कठिन साधना की और क्रोध, मान, माया और लोभ जैसे कषायों के ह्रास से आप में क्षमा, मार्दव, आर्जव और संतोष प्रभृति आत्मिक गुणों का विकास हुआ । आपका व्यक्तित्व लोकोत्तर और जीवन स्फटिकमणि सा निर्मल हो गया ।
इस दीर्घकालीन विहारचर्या में भगवान् ने जो जो घोर तपश्चर्यायें कीं उनकी तालिका इस प्रकार है—
१ षाण्मासिक ।
१ पाँच दिन कम षाण्मासिक ।
९ चातुर्मासिक ।
२ त्रिमासिक ।
२ सार्ध द्विमासिक ।
६ द्विमासिक ।
२ सार्ध मासिक ।
१२ मासिक ।
७२ पाक्षिक ।
१ सोलह उपवास ।
१२ अष्टम भक्त ।
२२९ षष्ठ भक्त ।
इसके अतिरिक्त दशम भक्त आदि तपश्चर्यायें भी भगवान् ने की थीं ऐसा आचाराङ्ग सूत्र से ज्ञात होता है ।
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