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श्रमण भगवान् महावीर उक्त तपश्चर्याओं के संधि दिन (भोजन दिन) ३४९ होते हैं अर्थात् उक्त साढ़े बारह वर्ष के दीर्घकाल में भगवान् ने केवल ३४९ दिन ही भोजन किया था और सभी उपवास निर्जल ही किए थे ।
मध्यमा के उद्यान से विचरते हुए श्रमण भगवान् महावीर जंभियगाँव के समीप ऋजुवालुका नदी के उत्तर तट पर स्थित देवालय के समीप सालवृक्ष के नीचे उकडु आसन से ध्यानावस्थित हुए ।
निर्जल षष्ठभक्तप्रत्याख्यान कर आपने शुक्ल-ध्यान का आरम्भ किया और शीघ्र ही इस ध्यान की प्रथम दो श्रेणियों को पार करके ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय इन चार घातिकर्मों का क्षय किया और उसी समय (वैशाख शुक्ला दशमी के दिन, चौथे पहर के समय) आपने केवलज्ञान तथा केवलदर्शन को प्राप्त कर लिया ।
अब भगवान् सर्वज्ञ एवं सर्वदर्शी हुए । सम्पूर्ण लोकालोकान्तर्गत भूत भविष्यत्, सूक्ष्म व्यवहित, मूर्तामूर्त समस्त पदार्थ आपके ज्ञान में आलोकित
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