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________________ तीसरा परिच्छेद तीर्थंकर-जीवन ऋजुवालुका के तट पर प्रथम समवसरण भगवान् की कैवल्य प्राप्ति का समाचार पाकर देवों ने स्वर्ग से आकर समवसरण (धर्मसभा) की योजना की । इस प्रथम समवसरण में देवता लोग ही उपस्थित थे अत: विरतिरूप संयम का लाभ किसी प्राणी को नहीं हो सका । यह आश्चर्यजनक घटना जैनागमों में 'अछेरा' (आश्चर्यजनकअस्वाभाविक) नाम से प्रसिद्ध है। उन दिनों मध्यमा नगरी में एक धार्मिक प्रकरण चल रहा था । सोमिलार्य नामक एक ब्राह्मण अपने यहाँ एक बड़ा भारी यज्ञ करा रहा था । इसमें भाग लेने के लिए उसने देश-देशान्तरों से बड़े बड़े विद्वानों को आमन्त्रित किया था । बोधिप्राप्त महावीर ने देखा कि मध्यमा नगरी का यह प्रसंग अपूर्व लाभ का कारण होगा । यज्ञ में आये हुए विद्वान् ब्राह्मण प्रतिबोध पायेंगे और धर्म तीर्थ के आधारस्तंभ बनेंगे, यह सोच कर भगवान् ने सन्ध्या समय वहाँ से विहार कर दिया और रात बारह योजन (४८ कोस) चल कर मध्यमा के महासेन नामक उद्यान में वास किया । दूसरा समवसरण भगवान् महावीर का दूसरा समवसरण मध्यमा नगरी के महासेन उद्यान में हुआ । वैशाख शुक्ल एकादशी को प्रात:काल से ही मध्यमा के उस उद्यान की तरफ नागरिकों के समूह उमड़ पड़े थे । अपने अपने वैभवानुसार सजधज कर समवसरण में जाने के लिये मानों वे एक दूसरे से होड लगा रहे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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