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________________ श्रमण भगवान् महावीर थे। थोड़े ही समय में देव-दानवों और मनुष्य-तिर्यंचों के समूहों से महासेन वन में सभा के रूप में एक नगर बस गया । उस महती सभा में भगवान् महावीर ने सर्वभाषानुगामिनी अर्धमागधी भाषा में एक पहर तक धर्मोपदेश दिया जिसमें लोक-अलोक, जीव-अजीव, पुण्य-पाप, आस्रव-संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष का अस्तित्व सिद्ध किया । नरक क्या है, नरक में दुःख क्या है, जीव नरक में क्यों जाते हैं और तिर्यंचगति में जीवों को किस प्रकार शारीरिक एवं मानसिक कष्ट सहन करने पड़ते हैं इसका वर्णन किया । देवगति में पुण्य फलों को भोग कर अविरत जीव किस प्रकार फिर संसार की नाना गतियों में भ्रमण करते हैं इसका भी आपने दिग्दर्शन कराया । अन्त में भगवान् ने मनुष्यगति को अधिक महत्त्वपूर्ण और दुर्लभ बताते हुए उसे सफल बनाने के लिए पाँच महाव्रत, पाँच अणुव्रत, सात शिक्षाव्रत और सम्यक्त्वधर्म का उपदेश दिया । भगवान् महावीर के ज्ञान और लोकोत्तर उपदेश की सर्वत्र प्रशंसा होने लगी । मध्यमा के चौक और बाजारों में उन्हीं की चर्चा होने लगी । इस चर्चा को सोमिल के अतिथि विद्वानों ने सुना । वे चौकन्ने हो गये । यों तो सोमिलार्य के इन मेहमानों की संख्या हजारों की थी पर उनमें ग्यारह विद्वान्-१. इन्द्रभूति, २. अग्रिभूति, ३. वायुभूति, ४. व्यक्त ५. सुधर्मा, ६. मंडिक, ७. मौर्यपुत्र, ८. अकम्पित, ९. अचलभ्राता, १०. मेतार्य और ११. प्रभास विशेष प्रतिष्ठित थे । १. इन्द्रभूति मगध देशान्तर्वर्ती गोवरगाँव के रहनेवाले गौतमगोत्रीय ब्राह्मण थे । इनके पिता का नाम वसुभूति और माता का नाम पृथिवी था । उस समय इन्द्रभूति की उम्र ५० वर्ष की थी । आप ५०० छात्रों के मुख्याध्यापक थे । २. अग्निभूति इन्द्रभूति के भाई थे । इनकी ४६ वर्ष की उम्र थी। ये ५०० छात्रों के मुख्याध्यापक थे । ३. वायुभूति इन्द्रभूति के भाई थे । इनकी ४२ साल की उम्र थी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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