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तपस्वी जीवन
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पधारे । यहाँ भी एक गोप ने आपको उपसर्ग करने की निष्फल चेष्टा की ।
मेंढिय से आप कोशाम्बी पधारे और पौष कृष्ण प्रतिपद् के दिन भिक्षाविषयक यह घोर अभिग्रह किया - " मुण्डितसिर, पाँवों में बेड़ियों सहित, तीन दिन की भूखी, रांधे हुए उरद के बाकुले सूप के कोने में लेकर भिक्षा का समय बीत चुकने पर द्वार के बीच में खड़ी हुई तथा दासत्व को प्राप्त हुई यदि कोई राजकुमारी भिक्षा देगी तो ही ग्रहण करूँगा, अन्यथा नहीं ।"
उक्त प्रतिज्ञा करके भगवान् प्रति दिन कोशाम्बी में भिक्षाटन के लिए जाते परन्तु कहीं भी अभिग्रह पूर्ण नहीं होता था । इस प्रकार आपको घूमते २ चार महीने बीत गये पर अभिग्रह पूरा न हुआ ।
एक दिन आप कोशाम्बी के अमात्य सुगुप्त के घर पधारे । अमात्यपत्नी नन्दा श्राविका भक्तिपूर्वक भिक्षान्न देने आई पर भगवान् कुछ लिए बिना ही चले आए । नन्दा पछताने लगी । तब दासियों ने कहा - 'ये देवार्य तो प्रति दिन यहाँ आते हैं और कुछ भी लिए बिना चले जाते हैं ।' तब से नन्दा ने निश्चय किया कि अवश्य ही भगवान् को कोई दुर्गम अभिग्रह है जिससे आप आहार नहीं लेते । नन्दा बहुत चिन्तित हुई ।
जब अमात्य घर आया तो नन्दा को उदासीन देखा । उसने पूछा— क्या बात है ? चिन्तित सी दीख रही हो ।'
नन्दा ने कहा- - हमारा यह अमात्यपन किस काम का जब कि इतना समय होने पर भी भगवान् भिक्षा नहीं पाते ? और आपका यह चातुर्य भी किस काम का जो उनके अभिग्रह का पता नहीं लगा सकते ?"
आश्वासन देता हुआ सुगुप्त बोला- तुम चिन्ता मत करो । अब ऐसा उपाय करूँगा कि वे कल ही भोजन ग्रहण कर लेंगे ।
जिस समय भगवान् के अभिग्रह के विषय में बातें हो रही थीं उस समय प्रतिहारी विजया वहीं खड़ी थी । उसने सब बातें सुन लीं और महल में जाकर रानी मृगावती से निवेदन किया । रानी भी इस घटना से बहुत आकुल हुई और राजा को उलाहना देती हुई बोली- 'आपके राज्य की और
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