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श्रमण भगवान् महावीर नगर में ले जाने ही लगे थे कि भूतिलनामक एक इन्द्रजालिक वहाँ आ पहुँचा । उसने आपका परिचय देकर आपको ग्रामीणों से छुड़ाया । अब लोगों ने उस साधुवेषधारी की तलाश की । पर उसका कहीं पता नहीं चला तब ग्रामवालों को पूरा विश्वास हुआ कि इसमें कुछ रहस्य अवश्य है ।
तोसलि से भगवान् मोसलि पधारे और उद्यान में ध्यानारूढ हुए । यहाँ भी संगमक ने आप पर चोर होने का अभियोग लगवाया जिससे आप पकड़े जाकर राजा के पास ले जाये गये । राजसभा में राजा सिद्धार्थ का मित्र सुमागध नामक राष्ट्रिय बैठा हुआ था । भगवान् को देखते ही वह उठा और राजा से भगवान् का परिचय कराकर उन्हें बन्धन मुक्त करवाया ।
फिर आप तोसलि जाकर उद्यान में ध्यानारूढ़ हुए । इस समय संगमक ने आपके पास चोरी के औज़ार रख दिये । इन औज़ारों को देखकर लोगों ने आपको चोर के संदेह में पकड़ लिया और तोसलि क्षत्रिय के पास ले गये । क्षत्रिय ने आपसे कई प्रश्न पूछे और परिचय माँगा पर आपने कोई उत्तर नहीं दिया और न ही अपना परिचय दिया । इस पर तोसलि क्षत्रिय और उसके सलाहकारों को विश्वास हो गया कि अवश्य ही यह कोई छद्मवेशधारी चोर है। उन्होंने आपको फाँसी का हुक्म दे दिया । अधिकारियों ने आपको फाँसी के तख्ते पर चढ़ा दिया और तुरन्त गले में फाँसी का फंदा लगाया पर तख्ता हटाते ही फाँसी टूट गई । दुबारा लगाई । फिर टूट गई । इस तरह सात बार आपके गले में फाँसी डाली गई और सात ही बार टूट गई । इस घटना से कर्मचारी चकित हुए और क्षत्रिय से सब हकीकत बयान की जिसे सुनकर राजा तोसलि क्षत्रिय ने आपको आदर-सत्कारपूर्वक मुक्त कर दिया ।
तोसलि से भगवान् सिद्धार्थपुर गये और यहाँ भी चोर के संदेह में पकड़ लिए गये पर कौशिक नामक एक घोड़ों के व्यापारी के परिचय देने पर आपको छोड़ दिया गया । सिद्धार्थपुर से भगवान् व्रजग्राम (गोकुल) पहुँचे ।
बजगाँव में उस दिन कोई त्योहार था । घर-घर क्षीरान बना था । भगवान् भिक्षाचर्या के लिये निकले पर संगमक वहाँ भी पहुँच गया और
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